शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-लम्हें दुःख भरे

लम्हें दुःख भरे
2013 की आपदा केदारनाथ की,
वो मंजर भी हम सबने देखा।
2020 का जैसा मंजर,
शायद पहले कभी न देखा।।
बीते लम्हों की बात करें तो,
इंसान को घर में कैद न देखा।
क्या चाहती प्रकृति हमसे,
विचार मन में सबके,पनपते देखा।
कभी तो दुःख भरे लम्हें,
कम होंगे यहां धरा पर।
लोगों में मैंने, धैर्य को देखा।
पर चिंता की लकीरें,
माथे पर मेरी आजभी।
भूल बार बार यहां,
इंसान को करते देखा।।
बीती बातें भुला देता,
कुछ पलों में इंसान यहां।
मैंने इंसा,इंशा को, लड़ते देखा।।
नहीं संभला गर यदि इंसान
तो टूट जाएगी तेरी जीवन रेखा।
यहां अपनों की लाशों का,
अन्तिम संस्कार भी।
मैंने औरों को करते देखा।
कैसा दृश्य था वो हृदय विदारक
अपनो से दूर, अपनों को होते देखा।
सोच जरा दिल से इंसान,
मत पार कर घर की रेखा
डॉक्टर,पुलिस,नर्स पर्यावरण मित्रों को,
बिना स्वार्थ के,काम करते देखा।
उनके बारे में भी सोच जरा इंसान,
सड़को पर उनको,पत्थर खाते देखा।
अपने वतन में ही मैंने इंसान,
कोरोना योद्धाओं पर थूकते देखा
क्या दिल नहीं पसीजा उस वक्त उनका,
उनके अपनों को मैंने, दर्द सहते देखा।
दुःख भरे इस मंजर में मैंने,
भूख से तड़पते लोगों को देखा।
याद रखेगा वतन कोरोना योद्धाओं को
सुनसान सड़को पर उनको,
तेरे लिए चलते देखा।
जाति धर्म छोड़ छाड़ यहां,
सबको हमने मदद करते देखा।
बस अब तू भी जरा, ठहर जा घर में,
मत पार कर अब दहलीज की रेखा।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं।
भौत सुंदर रचना