अशोक आनन की कविता -विषधर रखवाले हो गए
उजियारे दिन, काले हो गए।
मौसम, बादल वाले हो गए।
दीयों का नहीं दोष ज़रा – सा
तम के साथ उजाले हो गए।
साथ, जिन्हें मिला बहारों का
ठूंठ, वे सब हरियाले हो गए।
हवा ने थोड़ा क्या सहलाया
पेड़ सभी मतवाले हो गए। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
मौन घर में क्या रहने आया
तोरण, घर के जाले हो गए।
जबसे हमने होंठ सीए हैं
ख़ुश तबसे ये ताले हो गए।
आज नेवलों के बंगलों के
ये विषधर रखवाले हो गए।
कवि का परिचय
अशोक आनन
जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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