Children Day: पंडित नेहरू का देहरादून से रहा नाता, यहां जेल में बिताया बंदी जीवन, लिखे किताब के कुछ अंश
बच्चों के चाचा नेहरू एवं देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देहरादून जेल में अपनी विश्वविख्यात भारत की खोज’ के कुछ अंश लिखे थे। देहरादून जेल की बैरक जहां पंडित नेहरू ने स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1932 से 1947 के बीच कुल चार बार अपना बंदी जीवन व्यतीत किया था। पुरानी जेल के मुख्य द्वार के निकट बने इस बंदीगृह को ‘नेहरू बार्ड’ के नाम से जाना जाता है।
इस बैरक में बीस फीट लम्बा, बारह फुट चौड़ा व पन्द्रह फीट ऊंचा एक शयनकक्ष, एक पाकशाला, स्टोर रूम तथा बैरक की दूसरी दीवार के सहारे बना शौचालय है। शयनकक्ष को छोड़ कर अन्य सभी कमरों की हालत दयनीय है। शयनकक्ष में एक लोहे का पलंग, एक लकड़ी की मेज और एक कुसी पड़ी है, जिस पर बैठकर वह लेखन कार्य किया करते थे।
बैरक की एक दीवार पर कुछ श्वेत-श्याम चित्र लगे हुए हैं, जो अब समय के साथ धुंधले पड़
गये हैं। इस कमरे में दो खिडकियां हैं। एक खिड़की को ब्रिटिश सरकार ने आधा बंद करा दिया था। पंडित जी इसी खिड़की से आने वालों से मिला करते शयनकक्ष में दीवार पर कतार में लगी तस्वीर हैं।
इन तस्वीरों में जेल जाते समय लोगों से मिलने के चित्र तथा अन्य तस्वीर में अपनी पुत्री व देश की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इन्दिरा गांधी व उनके दोनों पुत्र संजय व राजीव गांधी से मिलने जैसे दृश्य हैं। चारों ओर से ऊँची-ऊंची दीवारों से घिरी बैरक में पंडित नेहरू द्वारा लगाये गये गुलाब अब भी हैं, परंतु रखरखाव के अभाव में इनमें से एक दो पौधे ही फूल देते हैं। इसी अहाते के एक कोने में एक पेड़ खड़ा था जो अब नहीं है।
यहां एक पट्टिका लगी है जिससे पता चता है कि पंडित जी ने इस पेड़ का जिक्र भारत की खोज में किया था। यहां रखे एक बोर्ड पर पंडित जी के जेल आने का विवरण लिखा है। पंडित जी पहली बार 1932 फिर 1933 तथा तीसरी बार भारतीय दण्ड संहिता की धारा 134 में दो वर्ष की साधारण कैद के लिए 9 मई 1934 को पश्चिमी बंगाल की अलीपुर सेन्ट्रल जेल से यहां लाये गये थे। पंडित जी की पहचान कैदी संख्या 95वें थी। 11 अगस्त 1934 को नेहरू जी को यहां से नैनी जेल इलाहाबाद स्थानान्तरित कर दिया गया।
लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।