कुआं याद दिलाता है कि कभी था यहां गांव, धीरे धीरे बदल रहा कंक्रीट के जंगल में

देहरादून के बंजारावाला में हम रहने आए तो हम भी किसी बंजारे से कम नही। सौ साल पहले की छवि देखे तो यहां का वातावरण बिलकुल अलग रहा होगा। एक बुजुर्ग से जानकारी मिली कि यहां पहले चाय बागान थे। लगभग पचास साल पहले तक तो मुझे भी याद है यहां बागानों की । तब यहां का पर्यावरण बहुत सुहाना था। खेतों, बागानो, नहरों और कुओं से यह स्थान सरसब्ज हुआ करता था।
एक महिला से बात हुई तो उन्होने बताया कि वे पास की एक नहर से पानी लाया करती थी। कुछ लोग वहां नहाते। बच्चों का तो गर्मियों मे यही खेल होता। गांव था यह। कच्ची सड़कों और पैदल चलने का ही चलन था। यहां कुछ निजी और कुछ सार्वजनिक कुएं थे। कुएं अब भी है पर उनसे से अधिकांश मे पानी नही है।
अब तो यहां एक कुआं सिर्फ इस बात का गवाह के कि कभी यहां एक गांव था। गांव अब भी है। हालांकि यह क्षेत्र नगर निगम में शामिल हो चुका है। धीरे-धीरे खेत की जगह कंक्रीट के भवनों में तब्दील हो रही है। कुआं जहां है, उस पर मंदिर स्थापित कर दिया गया। ताकि कुएं का मुंह भी सुरक्षित रहे और कोई गलती से उसमें गिरे भी नहीं। फिर जल पूजा का तो हिंदुओं धर्म में महत्व है। कुएं में मंदिर आसपास के लोगों की आस्था का प्रतीक है। लोग श्रद्धा के साथ यहां पूजा भी करते।
यहां के गोरखा गांव मे पुराना पोस्ट आफिस था। जो अब भी पहचान बना हुआ है। उस स्थान को पोस्ट आफिक के नाम से संबोधित किया जाता है। भले ही अब वहां पोस्ट आफिस नहीं है। गांव में कभी आम, लीची, अमरुद, पपीता, बेर, पूलम आदि के पेड़ बहुतायात में मिल जाते थे। कभी कहीं किसी के घर के अहाते में दिखते हैं। खेतों में साथ सब्जियां पर्याप्त मात्रा मे उगतीं थीं।
अब खेत धीरे धीरे समाप्त हो रहे हैं। उनकी जगह कालोनियां ले रही हैं। मोनाल ऐन्कलेव के पास एक जगह गोरखा गांव का बोर्ड लगा है। अभी भी पुराने समय के कुछ चिह्नों के रूप मे खेत हैं। जहां गेहूं और अन्य फसले लगातार पैदा की जाती हैं। बंजारावाला चौक पर अष्टभुजा मंदिर और दुर्गा माता मंदिर के साथ इस इलाके मे कुछ प्राचीन मंदिर हैं ।
अब तो इस चौक से कारगी चौक तक ई रिक्शा चलते हैं। साथ ही कारगी चौक से विक्रम और बसे मिलती हैं। पहले कभी यहां तांगा नजर आता था। पहले अधिकांश लोग बंगाली कोठी से अजबपुर और फिर घंटाघर तक पैदल जाते थे। यहां क्षेत्र धर्मपुर विधानसभा के अंतर्गत आता है। यहां के विधायक विनोद चमोली बताते हैं कि पहले यहां बंजारे रहा करते थे। ग्रामीण इलाका था। समय के साथ स्थितियां बदली और टीएचडीसी के माध्यम से टिहरी बांध विस्थापित लोगो को भी यहां बसाया गया। आज यहां गढ़वाली, कुमांउनी, नौन गढवाली , गोरखा, मुस्लिम तमाम लोग बसे हैं। फिर भी गांव में कुआं हमेशा याद दिलाता रहेगा कि ये कभी एक गांव था। इस तरह अन्य गांवों के कुएं भी पुरानी याद को ताजा करने के लिए अपनी जगह ज्यों के त्यों स्थापित हैं।
लेखक का परिचय
डॉ. अतुल शर्मा (जनकवि)
बंजारावाला देहरादून, उत्तराखंड
डॉ. अतुल शर्मा उत्तराखंड के जाने माने जनकवि एवं लेखक हैं। उनकी कई कविता संग्रह, उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनके जनगीत उत्तराखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की जुबां पर रहते थे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।