Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

April 15, 2025

कवि की नजर से जानिए समुद्र की लहरों का शिला से संवाद

[ समुद्र की लहरों की अनवरत मार झेलता हुआ किनारे पर स्थित एक पत्थर, उससे टकराती सागर की लहरें और पास में पड़ा बालू का एक कण जीवन के एक अत्यन्त अमूल्य, चिरंतन सत्य का दर्शन कराते हैं। प्रस्तुत है मुकुन्द जोशी की कविता]

शिला-सागर संवाद
“व्यर्थ तुम्हारा सारा श्रम है, भ्रम सब हो जायेगा दूर
कितनी भी बलवान लहर हो कर दूँगा मद सारा चूर
जाने कब से मार रहे हो टक्कर पर टक्कर भारी
मैं अविचल ही हँसता रहता देख तुम्हारी लाचारी

तुम द्रव हो छितरा जाते हो, मैं घन शाश्वत खड़ा हुआ
तेरी सब आभासी गति है, मैं सुस्थिर हूँ अड़ा हुआ
तेरी व्यर्थ गर्जना है यह सब, सुनो वर्जना तुम मेरी
बन्द करो यह छल नर्तन अब नहीं बजेगी रणभेरी”

” अरे दृषद! जड़! देख रहा हूँ नहीं दूर तेरा अब अंत
कण कण कर के तोड़ रहा हूँ टूटोगे निश्चित ही हंत
भभराकर तुम शीघ्र गिरोगे आओगे मेरी ही गोद
समाधि तुमको मैं ही दूँगा पाऊँगा अंतिम मैं मोद

मैं द्रव हूँ तुम हो घन यद्यपि द्रव की पर है शक्ति अपार
तुम स्थिर हो पर मैं गति में सह न सकोगे गति की मार
ऊर्जा मेरी गतिज अपरिमित स्थितिज तुम्हारी सीमित
उद्धत तव शिर नत ही होगा चेतन का अन्तिम स्मित”

शिलाखण्ड का औ सागर का सुनकर के यह परिसंवाद
सिकता का कण सस्मित बोला बंद करो यह व्यर्थ विवाद
जल के बल से शिला टूटती औ उससे मैं बनता
मेरे जैसे कण जुड़ जुड़ कर एक नया प्रस्तर होता

यह क्रम तो चलता रहता है नाश और नूतन निर्मिति
नहीं जगत में कुछ भी शाश्वत नहीं सत्य है स्थिति अथवा गति
कभी पूर्व में यह न सिंधु था और नहीं था यह प्रस्तर
आगे भी ये कबतक होंगे बतलाना तो है दुस्तर

हम सब परवश पात्र मात्र हैं प्रकृति नटी के कर के
तज कर सब निज दंभ, अहंता प्रसन्न हों जी भर के
ऊर्जा हो या पदार्थ सारे एक तत्त्व के हैं प्रतिरूप
छोड़ें अपने क्षुद्र मान सब समझें गुनें यथार्थ अनूप

लेखक का परिचय

नाम: मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी

जन्म: 13 जुलाई, 1948 ( वास्तविक ), 1947 ( प्रमाणपत्रीय ), वाराणसी

शिक्षा: एम.एससी., भूविज्ञान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), पीएचडी. (हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय)

व्यावसायिक कार्य: डी.बी.एस. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, देहरादून में भूविज्ञान अध्यापन

रुचि:

  1. विज्ञान शोध एवं लेखन
    25 शोध पत्र प्रकाशित
    एक पुस्तक “मैग्नेसाइट: एक भूवैज्ञानिक अध्ययन” प्रकाशित
  2. लोकप्रिय विज्ञान लेखन
    एक पुस्तक “समय की शिला पर” (भूविज्ञान आधारित ललित निबन्ध संग्रह) तथा एक विज्ञान कविता संग्रह “विज्ञान रस सीकर” प्रकाशित
    अनेक लोकप्रिय विज्ञान लेख प्रकाशित, सम्पादक “विज्ञान परिचर्चा” ( उत्तराखण्ड से प्रकाशित लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका )
  3. हिन्दी साहित्य
    प्रकाशित पुस्तकें
  4. युगमानव (श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित खण्डकाव्य)
  5. गीत शिवाजी (छत्रपति शिवाजी के जीवन पर गीत संग्रह)
  6. साहित्य रथी ( भारतीय साहित्यकार परिचय लेख संग्रह )
  7. हिन्दी नीतिशतक (भर्तृहरिकृत “नीतिशतकम्” का हिन्दी समवृत्त भावानुवाद)
    विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएँ प्रकाशित
    संपर्कः
    मेल— mukund13joshi@rediffmail.com
    व्हॉट्सएप नंबर— 8859996565

Website |  + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page