Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 16, 2024

कुमाऊंनी संस्कृति के संरक्षण की एक कोशिश है होली की पुस्तक फाल्गुनी फुहारें

पहाड़ी गीतमाला फाल्गुनी फुहार को लोकगीतों का संग्रह भी कहा जा सकता है। इनमें कुछ गीत को लेखक की ओर से रचित हैं। वहीं, ऐसे गीत भी इसमें शामिल किए गए हैं, जिनके लेखकों का नाम भी शायद किसी को पता नहीं है।

पहाड़ी गीतमाला फाल्गुनी फुहार को लोकगीतों का संग्रह भी कहा जा सकता है। इनमें कुछ गीत को लेखक की ओर से रचित हैं। वहीं, ऐसे गीत भी इसमें शामिल किए गए हैं, जिनके लेखकों का नाम भी शायद किसी को पता नहीं है। सिर्फ पहाड़ के ग्रामीणों की जुबां पर गीत रहते हैं, लेकिन लेखक कौन है, उसका किसी को पता नहीं। भले ही लेखक का किसी को पता न हो, लेकिन ऐसे परंपरागत गीत हमेशा के लिए अमर हो गए हैं।
हमारी सांस्कृतिक विरासत के रूप में होली का बड़ा महत्त्व रहा है। हमारी पहचान, हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हैं। जिसकी सहायता से हम दूर देश में भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ऐसा ही एक त्योहार है होली; रंगों की होली, ठिठोली की होली, हास परिहास की होली, सामुहिक मिलन की होली। इस बार की होलियों में काली कुमाऊं के लेखक ललित मोहन गहतोड़ी का होली संग्रह “फाल्गुनी फुहारें” नाम से बाजार में उपलब्ध है।
लेखक चंपावत जिले के लोहाघाट में जगदंबा कालोनी में रहते हैं। अब तक पर फाल्गुनीफुहार के तीन अंक प्रकाशित कर चुके हैं। वहीं, चौथे अंक के प्रकाशन की तैयारी कर रहे हैं। पहला प्रकाशन उन्होंने वर्ष 2014-15 में भाग एक के रूप में किया। इसके बाद वर्ष 2015-16 में पहाड़ी गीत माला भाग- दो के रूप में किया। तीसरा प्रकाशन फाल्गुनीफुहार नाम से 2019-20 में किया।
वर्तमान समय में पुस्तक खरीदकर पढ़ने की आदत लोगों में समाप्त होती जा रही है। हां कोई फ्री भी दे दे तो भी पढ़ने वाले कम ही मिलते हैं। या यूं कहें कि इंटरनेट की दुनिया में साहित्य को पढ़ने वाले काफी कम हैं। खुद साहित्यकार भी ये उम्मीद करते हैं कि उनकी रचनाओं को दूसरे पढ़ें, लेकिन वे खुद कितनों को पढ़ते हैं, ये उन्हीं के दिल से पूछना चाहिए। सिर्फ कवर पेज को पढ़ना और शुरू के दो पेज को पढ़ने को पढ़ना नहीं कहते हैं। लेखक क्या परोस रहा है, उसे समझने की जरूरत है।


किताब को प्रकाशित करना आसान नहीं है। पहले उसके लिए सामग्री जुटाओ। फिर सामग्री को टाइप कराओ। फिर प्रिंटिंग प्रेस में जाओ। हर प्रूफ को पढ़ो। जेब को ढीली करो। तब जाकर पुस्तक बाजार में आती है। यहां लेखक ने पहले और दूसरे अंक में हर पुस्तक की कीमत 51 रुपये तय की। फिर महंगाई की मार लेखक पर भी दिखा तो उन्होंने तीसरे अंक की कीमत 151 रुपये नियत की। हां इतना जरूर है कि एक साथ तीन पुस्तकें लेने पर दो सौ रुपये चुकाने होंगे।
लेखक को पता है कि यदि पुस्तक की कीमत नहीं रखी गई और फ्री में बांटी गई तो शायद पुस्तक का एक पन्ना भी न खुले। ऐसे में वो ही खरीदेगा जो पढ़ने का शौकीन होगा। बाजार नहीं मिला तो पुस्तक लोगों के हाथों कैसे पहुंचेगी। यहां भी लेखक मां नंदा देवी टी स्टाल निकट रोडवेज स्टेशन लोहाघाट जिला चंपावत में पुस्तक उपलब्ध कराई है। चाय की दुकान से ही पुस्तक की बुलिंग होती है। इसके लिए बाकायदा मोबाइल नंबर 8954927749 में संपर्क किया जा सकता है।
फाल्गुनी फुहारें नाम से निकल रही सांस्कृतिक पुस्तक का यह तीसरा अंक भजन फुहारें नाम से नवल प्रिंटर्स अल्मोड़ा से प्रकाशित हो चुका है। काली कुमाऊं चंपावत के लोहाघाट से निकलने वाली पुस्तक फुहारें में विभिन्न राग रंगनी, भजन और खड़ी होलियों का संकलन किया गया है। इसमें से कुछ होलियां इस पुस्तक के लेखक की स्वरचित हैं।
पुस्तक में विभिन्न अवसरों पर आयोजित होने वाली रात्रि बैठकों के भजन, चुनिंदा प्रचलित राग और खड़ी होली का संकलन बेहद सराहनीय है। पुस्तक के लेखक और प्रकाशक ललित मोहन गहतोड़ी ने बताया कि उन्हें आगे भी मौका मिला तो वह कुमाऊं के प्रत्येक गांव और क्षेत्र भ्रमण करते हुए इसी तरह से संकलन इकट्ठा कर अपने पाठकों के सम्मुख प्रकाशित करते रहेंगे।
एक भेंटवार्ता में उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया के दौर में पुस्तक प्रकाशित करना एक चुनौती भरा कदम है, लेकिन उन्हें अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए हर चुनौती स्वीकार है। वह तन मन और धन से संस्कृति संरक्षण के लिए तैयार हैं। उन्हें आशा ही नहीं विश्वास है कि उनकी फाल्गुनी फुहारें संपादकीय टीम संस्कृति संरक्षण के लिए हमेशा तत्पर रहेगी।
इन पुस्तकों में छांटकर हर विधा यथा होली, भजन, लोकगीत को सामायोजित किया गया है। डायरियों के पेजों को स्कैन कर भी इसमें जगह दी गई। गांव गांव से लोग अपनी डायरी लेकर पुस्तक में अपनी रचना प्रकाशित कराने आते हैं। ये लेखक ही पुस्तकों को आगे लोगों के हाथ तक पहुंचाने का काम करते हैं। त्योहारों में इसमें प्रकाशित गीत लोगों की जुबां पर भी रहते हैं। इस पुस्तक की खास बात यह है कि इसमें काली कुमाऊनी बोली भाषा का प्रयोग किया गया है। पुस्तक के लिए फाल्गुनीफुहार के लेखक को लोकसाक्ष्य की ओर से बधाई।


पुस्तक के लेखक का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page