गढ़वाली कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गजल- इनै मोबैल उनै टेलीविजन
इनै मोबैल उनै टेलीविजन
इनै मोबैल – उनै टेलीविजन, चल़णू च.
कैथैं यो – कैथैं वो प्रोग्राम, भलु लगणू च..
दीन-दुन्य से बेखबर, कख जांणा छवां हम,
आज हमरु यो मन, हमथैं किलै ठगणू च..
खांण दौं बि- मोबैल, सींण दौं बि- मोबैल,
तब बोदीं-न निंद आंणी, न खांणू पचणू च..
उल्टु – सीधु खैंण्यूं , बिगर चबयां- घुऴण्यूं,
पेट हूंणा-खराब, रात-दिन गऴ्या तकणूं च..
झंकरा बढ्यां छीं, लत्ता-कपड़ा गढ़्यां छीं,
दौं- दौं खांणा कु, कुछ- न- कुछ मंगणू च..
घर कु बजट- लैगे बढण, दुख कैम बटंण,
घर- गृहस्थी बोझ, झड़ि कनम- सकणू च..
‘दीन’ भितरी-भितर खमोसि, बिगड़ीं बोल,
बात पीछा जै- कैकु, ऐंडि- बैंडि बकणूं च..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
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