दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ के गढ़वाली दोहे-पुरणि होऴि

पुरणि-होऴि
पैल्या होली- होरि छै, अब ह्वे ग्याई- हौरि.
हुलियारौं-आंण देखिक, सरैल जांदा-डौरि..
तब- हुलयारौ आंद छा, गौं- गौं द्वारौं- द्वार.
सजी-धजी हुलियारौं क, बीचम जिल्लादार..
फुलदेई बटि – पैटिगीं, ले देवी – आशीश.
सबि हुलियारा बीस छीं, कुई नी-यख उन्नीस..
माँ कु मंदिर बड़ांणा कु, गौं- गौं मगड़ां दान.
दान जुटै – मंदिर बड़ैं, बढाइ – देवी मान..
उनि होली-अब नि राई, अब रै-खाली याद.
चौकूम ऐ- खेलद छा, करदा छा – संवाद..
होली की हुड़दंग मा, मन म छाई- उलार.
फूलौं कू- रंग घोऴिक, मनांदा छा- त्युहार..
छरड़ी कु दिन-जब आई, माँ न तेकु चढाइ.
हमन भूड़ि – पकोड़ी खै, होरी खूब मनाइ..
‘दीन’ होली का-वो दिन, कन छा रौनकदार.
आजा हुड़दंग देखीक, नी निकऴिंदू भ्यार..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
होली पर्व की सबुकु शुभकामना.
पैल्याकि होलि शांत व सुंदर छै.. अब जनि हुड़दंग न रैंदि छै.
आपथैं रचना कन लाग जरूर बतैं.