दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’की गढ़वाली कविता-स्वाचा
स्वाचा
दुन्यां का रंगा- दंगौं म, रंगमत न ह्वावा.
अपड़ा ऐथर – पैथर भि, द्यखद रावा..
तुमी छा- जौंन यो , आज बणांई.
अपड़ हथौंन, अपणु भाऽग रचाई.
तुमी अब बोना छा, यो क्य ह्वै गे-
स्वाचा- तुमन यो, क्य कैरि द्याई..
जन जगा रैला, उनी संगत पैला.
जन बोलि-बोली, उनीत सिखैला.
जनु देश-उनु भेष, अफी ह्वे जांद-
स्वाचा इनम संस्कार, कनम देला..
बगदि हवा दगड़, न बगद- उड़द जावा.
दुन्यां का…….
नौना- बिदकणा , ऊं समाऴा.
नौना- डबकणा, भलिखे पाऴा.
जनु आज च, भोऴ उनी बड़लु-
समझ से-समझ का, द्वार ख्वाला..
बगत लौटी, अज्यूं आंण लैगे.
नयूं सबक, रोज सिखांण लैगे.
बगत की- मार की , पैनि धार-
अपड़ौथैं अज्यूं, खुज्यांण लैगे..
बगत फरि बगत का, ध्वारा जावा-आवा.
दुन्यां का………
समै की चाल, भलिखे जांणा.
अपड़ौं भि, दगड़म पछ्याणा.
को छूट पैथर, अगनै कु गाई-
रावा सब्यूं, रऴाणा-मिऴांणा..
एक से एक मिल, ह्वे अग्यारा.
जमना-भीड़ म, न रावा न्यारा.
दूर बटि, पछ्याण ल्यो तुम थैं-
समड़ि च जो, वी त छिं म्यारा..
‘दीन’ ! बड़ैं-अपड़ी पैचान, सबथैं बतावा.
दुन्यां का…………
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
यह मेरी आज के समय में आ रहे बदलाव को देखने परखने पर लिखी रचना है. कृपया पढ़े व अपनी प्रतिक्रिया भी दे.
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