टिहरी जनक्रांति के नायक नागेन्द्र सकलानी, मोलू भरदारी के शहादत दिवस पर माकपा ने अर्पित की श्रद्धांजलि
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने टिहरी जनक्रांति के नायक शहीद नागेंद्र सकलानी तथा मोलू भरदारी की 74वीं शहादत दिवस पर उन्हें श्रद्धान्जलि दी। उनके चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित किए।
वक्ताओं ने कहा कि आज से 74 बर्ष पूर्व 11 जनवरी 1948 को टिहरी गढ़वाल राजशाही के खिलाफ लड़ते हुए नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी कीर्तिनगर में शहीद हुए थे। उनकी शहादत ने लगभग 1200 साल की सामंती हकूमत से टिहरी की जनता को मुक्ति मिली थी।
जीवन पर डाला प्रकाश
वक्ताओं ने कहा कि तब टिहरी की जनता एक साथ राजा और ब्रिटिश राज दोनों का दमन झेल रही थी। 1920 को जन्मे नागेन्द्र सकलानी 16 वर्ष की उम्र में ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े सक्रिय कम्युनिस्ट कार्यकर्ता बन चुके थे। इसी बीच टिहरी रियासत में अकाल पड़ा तो राजा ने जनता को राहत देने के बजाय अपने राजकोष को भरना ज्यादा मुनासिब मानते हुए भू-व्यवस्था एवं पुनरीक्षण की आड़ में जनता को ढेरों करों से लाद दिया। इस राजसी क्रूरता के खिलाफ नागेन्द्र ने गांव-गांव अलख जगा आंदोलन को नयी धार दी। नतीजतन, राजा का बंदोबस्त कानून क्रियान्वित नहीं हो सका।
राजशाही से क्षुब्ध लोगों ने सकलाना पट्टी व अन्य आन्दोलनकारियों के नेतृत्व में कड़ाकोट (डांगचौरा) से बगावत शुरू कर दी और करों का भुगतान न करने का ऐलान कर डाला। किसानों व राजशाही फौज के बीच संघर्ष का दौर चला। वक्ताओं ने कहा नागेन्द्र को राजद्रोह में 12 साल की सजा सुनाई गई। नागेन्द्र सकलानी ने जेल में 10 फरवरी 1947 से आमरण अनशन शुरू किया। मजबूरन राजा को नागेन्द्र सकलानी को साथियों सहित रिहा करना पड़ा। इससे पूर्व श्रीदेव सुमन की शहादत पहले ही जेल में हो चुकी थी। राजा जानता था कि सुमन के बाद यदि सकलानी की जेल में ही शहादत हुई तो इसकाअंजाम क्या हो सकता है।
इसके साथ ही जनता ने वनाधिकार कानून संशोधन, बरा बेगार, पौंणटोंटी जैसी कराधान व्यवस्था को समाप्त करने की मांग की। मगर राजा ने इसे अनसुना कर दिया। इसके खिलाफ सकलाना पट्टी सहित अनेक जगहों पर राजशाही के खिलाफ विद्रोही कार्यवाहिंयां हुई। नौजवानों तथा जनता के बडे़ हिस्से ने इसमें हिस्सा लिया आन्दोलन पर कम्युनिस्टों का काफी असर था। उसी दौर में टिहरी से बाहर रहकर देहरादून सहित देश अनेक हिस्सों में आजादी का आन्दोलन जोरों पर था। जिसमें यहाँ के युवा हिस्सेदारी ले रहे थे। जो बाद को टिहरी राजशाही के खिलाफ निर्णायक आन्दोलन के नायक बने। इन पर राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन का स्पष्ट असर था। क्रान्तिकारी आन्दोलन शहीदे आजम भगतसिंह, पेशावर विद्रोह के महानायक कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली, आजाद हिन्द फौज तथा गांधी जी को टिहरी राजशाही के खिलाफ संघर्षरत आन्दोलनकारी अपना आदर्श मानते थे।
10 जनवरी1948 को नागेन्द्र सकलानी के नेतृत्व में जनता ने कीर्तिनगर की कचहरी में कब्जा कर वहाँ राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया। टिहरी राज्य के अधिकारियों ने पुन: कचहरी पर अधिकार करने का प्रयत्न किया, परन्तु जनता के आक्रोश के समक्ष वे विफल रहे। रियासती कर्मचारियों द्वारा जनता को भयभीत करने के उद्देश्य से अश्रु गैस का प्रयोग किया गया। जनता ने उत्तेजित होकर कचहरी में आग लगा दी।
10 जनवरी 1948 को नागेन्द्र सकलानी ने प्रजामंडल के युवा नेता त्रेपन सिंह नेगी, खिमानन्द गोदियाल, किसान नेता दादा दौलत राम, कांग्रेसी कार्यकर्त्ता त्रिलोकीनाथ पुरवार, कम्युनिस्ट कार्यकर्त्ता देवी दत्त तिवारी के सामूहिक नेतृत्व में सैकड़ों ग्रामीणों के साथ कीर्तिनगर के न्यायलय तथा अन्य सरकारी भवनों को घेर कर रियासत की फौज तथा प्रशासन से आत्मसमर्पण करवा दिया। कीर्तिनगर को आजाद घोषित करते हुए कीर्तिनगर आजाद पंचायत की घोषणा कर दी गयी।
11 जनवरी 1948 को जब आन्दोलनकारी राजधानी टिहरी कूच की तयारी कर रहे थे। तब रियासत की नरेन्द्र नगर से भेजी गयी फौज ने कीर्तिनगर पर पुन: कब्ज़ा करने का प्रयास किया। कीर्तिनगर आजाद पंचायत की रक्षा के संघर्ष में कामरेड नागेन्द्र सकलानी और मोलूराम भरदारी, शाही फौज के एक अधिकारी कर्नल डोभाल की गोलियों का शिकार बन गए। 12 जनवरी 1948 की सुबह पेशावर कांड के नायक चन्द्र सिंह गढ़वाली कोटद्वार से कीर्तिनगर पहुँच गए. उनके सुझाव पर शहीद नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी की अर्थियों को आन्दोलनकारी उठा कर टिहरी की दिशा में चल पड़े।
विद्रोह के समक्ष झुकी सरकार
जनता के युवा नेता नागेन्द्र सकलानी को कीर्तिनगर में रियासत सैनिकों द्वारा गोली मार दिए जाने के पश्चात् टिहरी राज्य के विरूद्ध चल रहे जनांदोलन का नेतृत्व पेशावर सैनिक विद्रोह के नेता चन्द्रसिंह गढ़वाली के सबल हाथों में आ गया। स्थान-स्थान पर जन आक्रोश भड़का। रियासती कर्मचारियों को विद्रोह के समक्ष वापिस लौटना पड़ा। परिणामत: फरवरी 1948 में टिहरी में अंतरिम सरकार’ की स्थापना की गयी। अंतरिम सरकार ने टिहरी में अनेक सुधार एवं निर्माण के कार्य किये। भारत सरकार ने एक विज्ञप्ति प्रसारित कर पहली अगस्त 1949 को टिहरी राज्य को संयुक्त प्रान्त में मिलाने की घोषणा कर दी।
महाबीर शर्मा को भी दी श्रद्धांजलि
इस अवसर पर सीआईटीयू के पूर्व कोषाध्यक्ष महाबीर शर्मा को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर याद करते हुए उनके चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित किये। श्रद्धांजलि देने वालों में राज्य सचिव मंडल के सदस्य सुरेन्द्र सिंह सजवाण, जिलासचिव राजेंद्र पुरोहित, महानगर सचिव अनन्त आकाश, सचिव मण्डल सदस्य लेखराज, सीटू जिला उपाध्यक्ष भगवन्त सिंह पयाल, रामसिंह भंडारी, कोषाध्यक्ष रविन्द्र नौडियाल, मामचंद, इन्देश नौटियाल, विनोद कुमार, सुरेंद्र बिष्ट, ताजबर सिंह रावत, शैलेन्द्र परमार, शिवा दुबे, सुनीता चौहान, बबीता, दयाकृष्ण पाठक, लोकेश आदि शामिल थे।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।