बेचैन मन बेचैन मन सोचता बहुत है तर्क बितर्क के जंजाल में वो फंसता सा चला जाता है निरन्तर जीता...
नारी मंच
समाज ने सहर्ष स्वीकारा समाज ने सहर्ष स्वीकारा है, निरक्षर स्त्री को मगर नही स्वीकार कर पाया, पुरुषों से ज्यादा...
माली देता है हर रोज पानी.. जो जनता है बिन पानी फूल नही खिला करते। वक़्त दिया करो हर रिश्ते...
कर प्रयास शिखर तक पहुंचना है गर तुझे कर प्रयास, कर प्रयास, कर प्रयास न कर तू कभी भी यूं...
मैं ज़िंदगी कहूँ तो तुम.. तुम्हे ही पुकारा गया, ये बात समझना। मैं खुशी कहूँ तो तुम.... तुम्हे देखने की...
औकात सुबह उठी इक तितली मचली पर खोल देख निज रंगों को फूलों फूलों पर है इतराती कलियों को ताना...
अपनी सहूलियत के हिसाब से हर शख्स अपना किरदार रखता है.. उड़ते परिंदो के लिए कोई बंदूक तो कोई पानी...
मंजिल पाने के लिए, खुद ही चलना पड़ता है रास्तों पर मंजिल की तरफ रास्ते खुद, चलते हैं क्या! खुद...
मुझे विरल नहीं है रहना मुझे विरल नहीं है रहना, मुझको अविरल ही बहने दो। धारा - प्रवाह में घिस...
कुछ रिश्ते जुड़ जाते हैं खुद ब खुद। इन्हें जोड़ने के लिए नहीं करनी पड़ती कोई कोशिश... नही बनानी पड़ती...