अशोक आनन की कविता- ख़तरा अपनों से है
तानों के
तीर तने हुए हैं।
ख़तरा
ग़ैरो से नहीं,
अपनों से है।
शिकवा
नींदों से नहीं,
सपनों से है।
लहू से
हाथ सने हुए हैं।
विष बुझी
हवाओं से,
घिरे हुए हैं।
केन्द्र में
रहे हम,
सिरे हुए हैं। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
आंखों के
तिनके बने हुए हैं।
पैरों तले
आवाज़ें,
दबी हुई हैं।
चारों तरफ
तलवारें,
खिंचीं हुई हैं।
स्याह
और भी घने हुए हैं।
दीवारों में अब,
दम घुटता है।
अपनों में
अपनों का,
चैन लुटता है।
उधड़ गए सम्बन्ध
जो बुने हुए हैं।
कवि का परिचय
अशोक आनन
जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।