अशोक आनन की कविता- गणतंत्र का पर्व

गणतंत्र का पर्व
गणतंत्र का शुभ दिवस आया।
भारत मां का मन हरषाया।
आसमान को छूए तिरंगा
शीश गर्व से उन्नत कर ये।
वीरों को फ़िर शीश झुकाएं
बलिदानों का वंदन कर ये।
गणतंत्र का पर्व फ़िर आया।
भारत मां का मन हरषाया।
अनगिनत वीरों ने प्राण दे
झोली में आज़ादी डाली।
गुलामी से मुक्त हो हमने
देखी होंठों पर ख़ुशहाली।
घर-घर घर ने दीप जलाए।
भारत मां का मन हरषाया। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
खेत – खेत फ़सल मुस्कुराई
गीत किसानों ने फ़िर गाए।
बहुत दिनों के बाद सभी के
दुर्दिन से फ़िर शुभ दिन आए।
कलरव कानों में फ़िर आया।
भारत मां का मन हरषाया।
आज़ादी को अक्षय रखना
फ़र्ज़ सभी का है अब भाई!
चाहे हों हम जैन, पारसी
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई।
उल्लास सभी के मन छाया।
भारत मां का मन हरषाया।
कवि का परिचय
अशोक आनन
जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।