अशोक आनन का पावस गीत-बादलों का शामियाना

बादलों का शामियाना
आसमान में तन गया
बादलों का शामियाना।
सांवली छांव भी
पसर गई धरा पर।
कंटीली धूप भी
निकल गई डराकर।
पेड़ों पर फिर सज गया
पक्षियों का आशियाना।
नदियों की आंखें
ताक रहीं आसमां।
नेह की फुहार से
हरी हुई दूर्वा।
अच्छा लगा मेघों से अब
बिजुरी का बतियाना।
दिन गुज़र रहे हैं
मौसम मनभावन के।
सपने बह रहे हैं
सतरंगी सावन के।
सुधियों में डूबकर ये मन
फ़िर हुआ सूफियाना।
मेघों के घर डलेंगे फ़िर
बूंदों के झूले ।
पावस की रिमझिम अदाएं
मन को छू-छू लें।
विरही बदन, अंगार बूंदें
मौसम है क़ातिलाना।
कवि का परिचय
अशोक ‘आनन’, जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।