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April 13, 2025

अब तो गिने चुने गांवों में नजर आते हैं घराट, बिजली चक्की के आटे में वो स्वाद कहां (आशिता डोभाल का लेख)

 

आधुनिकता की दौड़ में हमारे परंपरात तौर तरीकों में भी बदलाव हुआ है। अब पनचक्की (घराट) के आटे के स्वाद को हम यादों में ही लेते हैं। हां इतना जरूर है कि कई गावों में आज भी कुछ लोगों ने धारा के विपरीत संघर्ष करते हुए घराटों को जिंदा रखा है। पोष्टिकता से भरपूर घराट के आटे को पसंद भी किया जाता रहा है। पर धीरे-धीरे ये घराट अस्तित्व खोते जा रहे हैं। कुछ स्थानों पर इनके जीर्णोद्धार के प्रयास भी हुए। घराट चलने के दौरान इससे बिजली पैदा करने के भी प्रयास हुए। अभी इस दिशा में बहुत काम करना होगा। क्योंकि पानी के स्रोत भी सूख चले हैं। ऐसे में जब पानी नहीं रहेगा तो घराटों को जिंदा रखने की बात करना बेमानी होगा।
प्राचीन तकनीकी गुणवत्ता बेहतर
शुद्धता और आपसी भाईचारे की मिसाल कायम करने वाली ये चक्की शायद ही अब कंही देखने को मिलती होगी। गुजरे जमाने में जीवन जीने का ये मुख्य आधार भी होती थी। शायद पहाड़ की मानव सभ्यता के विकास की ये तकनीक सबसे प्राचीन भी है। फिर भी इससे पिसा गए गेहूं का आटा गुणवत्ता में बेहतर होता है। पहाड़ की जीवन शैली में इसे आम भाषा में घराट या घट्ट कहा जाता है। हिंदी में पंचक्की यानी कि पानी से चलने वाली चक्की।


पर्यावरण के अनुकूल
ये घराट पूर्ण रूप से हमारे चारों ओर के पर्यावरण के अनुकूल होते थे। इसका निर्माण हमारे बुजुर्गो ने अपनी सुविधा के अनुसार किया है। जिस जगह पानी की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता रही, वहीं इसका निर्माण किया गया। खासकर नदी या सदाबहार गाढ़ गदेरे में इसका निर्माण हुआ है। एक समय वो भी था जब हर गांव का अपना एक घराट होता था।चाहे वो किसी एक व्यक्तिगत परिवार का रहा होगा। पर पूरे गांव के लोग उसी घराट में अपना गेहूं, जौ, मक्का, झंगोरा या पीसने का जो भी होता था सब घराट में पिसा जाता था।


जानिए क्या है घराट
घराट की कार्य प्रणाली पूर्ण रूप से पानी के बहाव पर निर्भर करती है। जैसा पानी का वेग या प्रवाह होगा घराट वैसा ही काम करेगा। पानी की एक निश्चित मात्रा घराट चलाने में उपयोग में लाई जाती है। घराट चलाने के लिए काम से कम 300-400 मीटर दूर से गूल का निर्माण किया जाता है। ये गूल पीछे से चौड़ी और आगे से संकरी होती है, जिससे पानी में वेग ज्यादा उत्पन्न हो। इस गूल से पानी को पनाल (लड़की से निर्मित सीढ़ीनुमा) की ओर प्रवाहित किया जाता है। इस कारण पानी का प्रवाह तेज हो जाता है। इस प्रवाह के नीचे पंखेदार चक्र (घिरनी) भेरण लगी होती है।


उसके ऊपर चक्की पर दो पाट रखे जाते है। ये पत्थर के बने होते है। पंखे के चक्र के बीच का हिस्सा व ऊपर उठा नुकीला भाग ऊपरी चक्के के खांचे में निहित लोहे की खपच्ची में फंसाया जाता है। पानी के वेग से ज्यों ही भेरण घूमने लगती है। चक्की का उपरी हिस्सा घूमने लगता है। पिसाई के पाट के ऊपर लकड़ी का एक शंकु के आकार का एक पात्र बना होता है। ऊपर से चौड़ा और नीचे से संकरा होता है। संकरे हिस्से में लकड़ी की नाली लगाई जाती है। जिससे कि अनाज लकड़ी के नाले से होकर चक्की वाले पाट के छिद्र में ही गिरे व अनाज की पिसाई सही ढंग से हो सके।
स्वाद और शुद्धता में अंतर
आधुनिक तकनीक ने नई नई चक्कियों का निर्माण तो कर दिया है, साथ है सुविधाजनक चक्कियों का भी। इससे ये प्राचीन तकनीक पीछे हो गई है। घराट में पिसे आटे और बिजली से चलने वाली चक्कियों के पिसे आटे के स्वाद और शुद्धता और गुणवत्ता में काफी अंतर होता है। ये अनुभव सिर्फ वो लोग कर सकते है, जिसने उस स्वाद को चखा है।


पिसाई की कीमत में दिया जाता था आटा
पुराने समय में लोगो के पास पैसा कम था। वस्तु विनिमय का प्रचलन भी था। घराट में लोग पिसाई के रूप में पैसा नहीं आटा देते थे। जिससे घराट चलाने वाले व्यक्ति के परिवार का भरण पोषण होता था। साथ ही पीसने वाले परिवार का भी। यानी कि आपसी भाई चारे का भाव भी था। आज हालात ये है आपदा से कई नदियों के पानी का रुख बदल जाने से कई गांव के घराट आपदा का शिकार बन चुके हैं। कई गाड गदरे (छोटे नाले या नदी) सुख चुके हैं। लोगो को अपनी सुविधा के अनुसार बिजली वाली चक्कियों में आटा पीसना आसान लगता है। उनको लगता है कि उनका समय बचेगा पर कहीं न कहीं वो घराट में पिसे आटे के स्वाद से बंचित रह गए हैं।
अभी भी जिंदा हैं घराट
अभी भी कुछ ऐसे गांव है जो इस घराट को जिंदा रखे हुए हैं। उदाहरण के लिए टिहरी जिले का जौनपुर विकासखंड और देहरादून का कालसी, चकराता ब्लॉक और उत्तरकाशी के नौगांव विकासखंड में कुछ एक जगह ऐसी हैं, जहां ये आज भी देखने को मिलते हैं। जौनपुर विकासखंड के जिला पंचायत सदस्य अमेंद्र बिष्ट ने पर्यटन के लिहाज से इस घराट के जीर्णोद्धार का काम भी करवाया है। उनके इस काम की लोग और बाहर से आने वाले पर्यटक भूरी भूरी प्रशंसा करते है।


लेखिका का परिचय
आशिता डोभाल
सामाजिक कार्यकत्री
ग्राम और पोस्ट कोटियालगांव नौगांव उत्तरकाशी।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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