किसी भी दवा के असर को दोगुना करता है सतवा, इसमें छिपे हैं प्रचूर औषधीय गुण

लगभग विलुप्त हो चुकी, दुर्लभ प्रजाति में सम्मलित औषधि प्रजाति सतुवा (वैज्ञानिक नाम पेरिस पालींफिला) को घाटी क्षेत्र में उगा और उसका संरक्षण और संवर्धन कर मिसाल कायम कर दी है। साथ ही प्रति वर्ष लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद यह कार्य न कर पाई सरकारी मशीनरी को भी आईना दिखाया है।
उल्लेखनीय है कि सतुवा को आईयूसीएन यानी अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा संकट ग्रस्त और विलुप्त औषधीय प्रजाति में शामिल कर चुकी है। सरकार इसके प्रोत्साहन के लिए सहायता देती तो इसका वैज्ञानिक विधि से सत्व निकाल कर विदेशी मुद्रा का अर्जन किया जा सकता है। साथ ही पलायन के दंश झेल रहे उत्तराखंड में रोजगार का सशक्त माध्यम बन सकता है।
सतुआ का यह है औषधीय उपयोग
सतुआ या सतुवा कही जाने वाली यह वनस्पति औषधीय गुणों से भरपूर होती है। इसका उपयोग जहरीले कीड़ों, साँप आदि के काटने, जलने, चोट लगने, मादकता, खुजली, जोड़ों के दर्द, आर्थोराइटिस आदि रोगों की आयुर्वेदिक और होम्योपैथी दवाओं में होता है। शोधों से यह बात भी सामने आयी है कि सतुवा को किसी दवा में मिला देने से उस दवा की प्रभावकारी शक्ति में कई गुना बढ़ोत्तरी हो जाती है। चीन में स्वाइन फ्लू के उपचार में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इस पौधे से प्राप्त कंद का बाजार मूल्य सामान्यतः दस हजार रुपये प्रति किलो तक है।
सरकार को देना होगा ध्यान
सरकार को सिर्फ बुनियादी सुविधाओं को देकर लोगों को परिचित कराने की जरूरत है।
इससे जहां सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी होती तो वहीं स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। अगर सब ठीक-ठाक रहा तो इस योजना के तहत उत्तराखंड विदेशी मुद्रा भी अर्जित की जा सकती है। अगर उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग को लेकर सरकारी मदद मिल जाए तो पहाड़ में काफी संभावनाए हैं। लेखक का शोध-पत्र वर्ष 2015 में जर्नल औषधीय पौधे फाइटोमेडिसिन और संबंधित उद्योगों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित है।
लेखक का परिचय
नाम -डॉ. महेंद्र पाल सिंह परमार ( महेन)
शिक्षा- एम0एससी, डीफिल (वनस्पति विज्ञान)
संप्रति-सहायक प्राध्यापक ( राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी)
पता- ग्राम गेंवला (बरसाली), पोस्ट-रतुरी सेरा, जिला –उत्तरकाशी-249193 (उत्तराखंड)
मेल –mahen2004@rediffmail.com
मोबाइल नंबर- 9412076138, 9997976402 ।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।