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February 23, 2025

दून वापस लौटी प्रथम चरण की स्वामी विवेकानंद स्मृति यात्रा, दूसरे चरण की यात्रा आरंभ

स्वामी विवेकानंद के विचारों से युवाओं को जोड़ने के उद्देश्य से आरंभ की गई यात्रा का पहला चरण समाप्त हो गया है। इसके तहत कुमाऊं मंडल में यात्रा की गई।

स्वामी विवेकानंद के विचारों से युवाओं को जोड़ने के उद्देश्य से आरंभ की गई यात्रा का पहला चरण समाप्त हो गया है। इसके तहत कुमाऊं मंडल में यात्रा की गई। यात्रा के लौटने के बाद कार्यक्रम संयोजक आध्यात्मिक गुरु आचार्य बिपिन जोशी ने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से भेंट कर स्वामी विवेकानंद जी के यात्रा पड़ावों के संरक्षण और संवर्धन का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद ने 1900 और 1901 में कुमाऊं के
काठगोदाम रेलवे स्टेशन से कई क्षेत्रों के लिए पदयात्रा की थी। उनके विचारों के प्रति युवाओं को जागरूक करने के लिए देव भूमि ट्रस्ट के संस्थापक और स्वामी विवेकानंद स्मृति यात्रा की ओर से भी यात्रा आरंभ की गई है।
उन्होंने बताया कि 21 दिसंबर से 25 दिसंबर तक स्वामी विवेकानंद जी के विचारों को युवाओं तक पहुंचाने के लिए उन्होंने सहयोगियों के साथ यात्रा की। इस दौरान पाया कि विवेकानंद जी के यात्रा पड़ावों में काठगोदाम रेलवे स्टेशन, धारी, पहाड़पानी, मोरनौला, धूनाघाट, अद्वैत आश्रम, मायावती, लोहाघाट का संरक्षण और संवर्धन जरूरी है। ये यात्रा 12 जनवरी 2021 तक चलेगी।
आचार्य विपिन जोशी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के विचारों श्रीमद्भगवत गीता के कर्म योग के सिद्धांत को अपनाकर उत्तराखंड के युवा और मातृ शक्ति बदल सकते हैं। यात्रा के दौरान संस्था सदस्य उत्तराखंड के युवाओं को स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से जोड़ने, उत्तराखंड के युवाओं को स्वरोजगार और रिवर्स पलायन के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। साथ ही यात्रा के पड़ावों में औषधिय पौधों का रोपण भी किया जा रहा है। ऐसे स्थानों पर स्वामी विवेकानंद जी के उस पड़ाव पर रुकने की जानकारी देने वाले बोर्ड भी लगाए जा रहे हैं। अब दूसरे चरण की यात्रा गढ़वाल के हिस्से में आरंभ कर दी गई है। 12 जनवरी 2021 तक देहरादून, जोनसार और गढ़वाल में विभिन्न आयोजन होंगे। अभियान में कार्यक्रम के सूत्रधार आध्यात्मिक गुरु आचार्य बिपिन जोशी, हरेंद्र विष्ट, विकास किरोला, शांति बिष्ट, कमल किशोर शर्मा, विनोद नवानी, त्रिवेणी सिंह बर्गली, सुनील लोहनी, मनीष ओली, योगेश पांडे आदि का विशेष सहयोग रहा।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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