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June 20, 2025

जीवन के आखरी पढ़ाव 78 साल की उम्र में लिया नवीं कक्षा में दाखिला, तीन किमी चलकर स्कूल ड्रेस में पहुंचते हैं स्कूल

कहते हैं कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। एक बुजुर्ग को जब अंग्रेजी समझने की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने स्कूल जाने का निश्चय किया। 78 साल के इस बुजुर्ग ने नवीं कक्षा में प्रवेश लिया और अब वह हर दिन तीन किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंच रहे हैं। बच्चों के साथ ही वह कक्षा में बैठते हैं। ये कहानी है पूर्वी मिजोरम के एक 78 वर्षीय बुजुर्ग लालरिंगथारा की। उन्होंने अपनी उम्र को स्कूली शिक्षा पूरी करने में बाधा नहीं बनने दिया। लालरिंगथारा स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर और किताबों से भरा बैग लेकर अपनी कक्षा तक पहुंचने के लिए हर दिन 3 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। नॉर्थईस्ट लाइव टीवी के अनुसार, मिजोरम के चम्फाई जिले के ह्रुआइकोन गांव के रहने वाले लालरिंगथारा की कहानी अब कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

छूट गई थी पढ़ाई
टाइम्‍स ऑफ इंडिया से बातचीत के दौरान लालरिंगथारा बताते हैं कि बेहद कम उम्र में ही उन्‍होंने अपने पिता को खो दिया था। इसके बाद मां के साथ खेतों में काम करने के चलते पढ़ाई को छोड़ना पड़ा। बेहद अधिक गरीबी और मुश्किल परिस्थितियों के कारण कई बार उनकी शिक्षा बीच में रुकी, लेकिन इसके बावजूद पढ़ाई के प्रति उनका जज्‍बा कभी कम नहीं हुआ। जब भी मौका मिला, उन्‍होंने अपनी पढ़ाई को फिर से शुरू किया। साल 1945 में जन्‍में लालरिंगथारा ने स्‍कूल के लिए साथ चलते वक्‍त रिपोर्टर को बताया कि खुआंगलांग में रहते वक्‍त मैंने दूसरी कक्षा तक पढ़ाई की थी। इसके बाद पढ़ाई को लंबा ब्रेक लग गया।1995 में उनकी मां ह्रुआइकोन गांव में शिफ्ट हो गई। तब तीन साल बाद वो वापस स्‍कूल जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

फिर 5वीं में लिया एडमिशन​
जब लालरिंगथारा ने बुढ़ापे में 5वीं कक्षा में प्रवेश लिया तो लोगों को लगा कि शायद वह पांचवी पास करके पढ़ाई छोड़ देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आखिरकार आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की। गांव में सिर्फ 8वीं तक की पढ़ाई के लिए स्कूल था इसलिए फिर पढ़ाई छूटने का डर था, लेकिन वह नहीं थमे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

चाहते हैं अंग्रेजी में सुधार
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के बाद वह अंततः 1995 में न्यू ह्रुआइकॉन गांव में बस गए। वह अपनी आजीविका कमाने के लिए स्थानीय प्रेस्बिटेरियन चर्च में गार्ड के रूप में काम कर रहे हैं। घोर गरीबी के कारण उनके स्कूली करियर के कई वर्ष बर्बाद हो गये। वह स्कूल वापस गए, क्योंकि वह अपने अंग्रेजी कौशल में सुधार करना चाहते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

सपने के आड़े नहीं आई उम्र​
लालरिंगथारा ने राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान हाई स्कूल में प्रवेश लिया। शुरू में आश्चर्य हुआ, स्कूल के अधिकारियों ने उसे कक्षा 9 में भर्ती कराया। उन्होंने उन्हें किताबें और यूनिफॉर्म भी दी। अब वह रोज 3 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मिजोरम भाषा में शिक्षित हैं लालरिंगथारा
लालरिंगथारा बताते हैं कि दूर के रिश्‍तेदारों की देखरेख में पढ़ाई ज्‍यादा आगे नहीं बढ़ सकी। उन्‍हें शिक्षा के संदर्भ में ज्‍यादा दिलचस्‍पी नहीं थी। खेतों में लंबे वक्‍त तक काम करना पड़ता था। वही प्राथमिकता भी थी। इतनी मुश्किलों के बावजूद वो मिजोरम भाषा में शिक्षत हुए। फिलहाल वो एक चर्च में चौकीदार का काम कर रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अंग्रेजी टीवी चैनल देखने के लिए फिर ज्‍वाइन किया स्‍कूल
आठवीं कक्षा पास करने के बाद इसी साल अप्रैल में उन्‍होंने ह्रुआइकोन में स्थित राष्‍ट्रीय माध्‍यमिक शिक्षा अभियान हाई स्‍कूल में नौवीं कक्षा में दाखिला लिया। जहां उन्‍हें किताबें और यूनिफॉर्म दी गई। लालरिंगथारा का कहना है कि उनका इस उम्र में हाई स्‍कूल जाने का अब एक ही मकसद है। वो अंग्रेजी भाषा सीखना चाहते हैं। उनकी इच्‍छा अंग्रेजी में आवेदन पत्र लिखने की है। साथ ही वो अंग्रेजी भाषा में टीवी पर न्‍यूज का टेलीकास्‍ट देखना चाहते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अधिकारियों ने कहा कि अंग्रेजी सीखने की उनकी इच्छा ने उन्हें इस उम्र में भी स्कूल लौटने के लिए प्रेरित किया। उनकी महत्वाकांक्षा केवल अंग्रेजी में आवेदन पत्र लिखने और टेलीविजन पर प्रसारित समाचारों को समझने में सक्षम होना है।
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Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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