पलायन को लेकर गढ़वाली कविता, मां जबसे इस शहर में आया हूँ
मां जबसे इस शहर में आया हूँ
न ताजा पानी पिया हूँ
न ताजी सब्जी खाया हूँ
मा जबसे इस शहर में आया हूँ
डब्बे का दूध बोतल का पानी
खो दी मैने ये अपनी जावानी
सब कुछ खोकर कुछ नही पाया हूँ
मां जबसे शहरमें आया हूँ
न ताजा पानी पिया हूँ नताजी सब्जी खाया हूँ
तू ही कहती थी पढ़ लिख छोड़ दे इस गाँव को
अब तरस रहा हूँ तेरी कि छांव को
सबके चेहरे उजले है यहाँ पर मैल भरा पड़ा है
हर एक शख्श साथ होकर भी लूटने को खड़ा है
जिसको आज तक नही समझ पाया हूँ
मां जबसे जबसे शहर में आया हूँ न ताजा पानी पिया हूँ न ताजी सब्जी खाया हूँ
रचनाकार का परिचय
नाम -डॉ. महेंद्र पाल सिंह परमार ( महेन)
शिक्षा- एम0एससी, डीफिल (वनस्पति विज्ञान)
संप्रति-सहायक प्राध्यापक ( राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी)
पता- ग्राम गेंवला (बरसाली), पोस्ट-रतुरी सेरा, जिला –उत्तरकाशी-249193 (उत्तराखंड)
मेल –mahen2004@rediffmail.com
मोबाइल नंबर- 9412076138, 9997976402 ।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।