Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

September 20, 2024

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-करम

1 min read
कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-करम।

करम

करिल्या-भला करम, नि करा-खटकरम भयो.
गरीब- गुरबौ मदद कनुबि, हमरु- धरम भयो..

बड़ा-बड़ा तिलक लगै, पूजापाठ करै क्य होलु,
ज्यू म नि दुख- दरद, न ऑख्यूंम- सरम भयो..

पुटगि- अपड़ि-अपड़ि सब भ्वदीं, सब्यूंन भ्वार,
निभांण बि प्वणद, ईं जिंदगी- क्वी मरम भयो..

घटत-बढत की-ईं गणत म, न-सदनि उऴजा,
गणत बगैर- खुल्ला जियल, करा- करम भयो..

ज्यू भितरा लोभ- लाऴच, कूंणा डळण प्वड़द,
एक-हैंका से प्रेम-भौ, पैजद जरा-जरम भयो..

काम-करण फरि आयु त, क्वी बि-करे सकिंद,
छ्वड़ण प्वड़द – पैलि, मीं- मीं कु – भरम भयो..

‘दीन’ ! मान- सम्मान बि त, वे हि मिलद यख,
ज्ञान- ध्यान से बड़ु ह्वेकि बि, जो रै-नरम भयो..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *