आइए जानते हैं तीर्थ नगरी ऋषिकेश का इतिहास, यहां आश्रम व मंदिर बढ़ा रहे हैं शोभा
समुद्र तट से लगभग 1106 फीट की ऊँचाई पर अवस्थित ऋषिकेश उत्तराखंड का प्रमुख तीर्थ स्थान है। इसका क्षेत्रफल 1120 वर्ग किलोमीटर के लगभग है। यहाँ की जलवायु समशीतोष्ण होने के कारण स्वास्थ्यवर्द्धक है। यह रैम्य ऋषि की तपोभूमि है।
ऐसे पड़ा नाम ऋषिकेश
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने स्वयं इस स्थान पर हषीकेश नाम से विख्यात होने तथा इस स्थान का नाम हषीकेश होने का वरदान रैम्य ऋषि को दिया था। इसी कारण इस स्थान को हृषीकेश कहा गया। जो बाद में ऋषिकेश कहलाया।
देहरादून जिले की तहसील
ऋषिकेश, देहरादून जिले की तहसील है। इसकी सीमायें रायवाला रेलवे स्टेशन और
समीपवर्ती सत्यनारायण मन्दिर से लेकर लक्ष्मणझूला तक समझी जा सकती है। प्रधान ऋषिकेश नगर गंगा के दाहिने तट पर बसा हुआ है। हरिद्वार से यहाँ की दूरी 24 किलोमीटर है। मोटर तथा रेल दोनों यातायात मार्ग से ऋषिकेश, हरिद्वार से जुड़ा हुआ है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी ऋषिकेश का बहुत महत्त्व है।
ऋषि-मुनियों का रहा यहां से नाता
इस पवित्र स्थान पर ऋषि-मुनियों के अनेक प्राचीन आश्रमों का विवरण मिलता है। साथ ही पता लगता है कि यहाँ वैदिक संहिताओं, उपनिषदों, ब्राह्मण ग्रन्थों और आरण्यकों का पठन-पाठन होता था। हैहयवंशी राजा सहस्त्रार्जु के भय से भृगुवंशी ब्राहमण इसी क्षेत्र में शरण लेने आये थे। वशिष्ठ, विश्वामित्र, भारद्वाज, परशुराम आदि का भी इस क्षेत्र से सम्बन्ध रहा है। कुरवंशी राजा
धृतराष्ट्र, पाण्डवगण, विदुर तथा धौम्य ऋषि भी इस स्थान पर तीर्थाटन के लिए आते रहे हैं। जैन तीर्थकर ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत ने दिग्विजय के प्रसंग में ऋषिकेश के समीपवर्ती राजा नमि की भगिनी सुभद्रा से विवाह किया था। भगवान बुद्ध भी इस क्षेत्र में धर्म प्रचार के लिए आये थे। बुद्ध के परिनिर्वाण के एक सौ सत्तर वर्ष के पश्चात् स्थविर साटावासी सम्भूत ऋषिकेश के समीपवर्ती अहोगंगा पर्वत पर बौद्ध धर्म के प्रचार का कार्य करते थे। मोग्गलिपुत्त तिस्स, जिन्होंने सम्राट अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र में होने वाली तृतीय बौद्ध संगीत में भाग लिया था, इसी क्षेत्र में उशीरध्वज नामक पर्वत पर साधना किया करते थे।
इनका रहा शासन
कत्यूरी वंश के राजा और कुणिन्द नरेशों का भी शासन इस क्षेत्र पर रहा था। ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी में तोमर और चौहान सामन्तों के आधिपत्य में ऋषिकेश भी था। पन्द्रहवीं शताब्दी में गढ़वाल के महाराजा अजयपाल ने राजा मंगलसेन से ऋषिकेश छीनकर अपने गढ़वाल राज्य में सम्मिलित किया था।
अंग्रेजों ने ऋषिकेश से ये स्थान कर दिए थे अलग
सन् 1803 में ब्रिटिश सरकार ने ऋषिकेश क्षेत्र में से हरिद्वार, ज्वालापुर तथा कनखल को विभक्त कर सहारनपुर में मिला दिया था। इन विवरणों से ज्ञात होता है कि यह स्थान अति प्राचीन काल से आध्यात्म और मानव की लिप्सा का केन्द्र बिन्दु रहा है। इतिहास के
जानकारों का कहना है यहाँ की संस्कृति को विक्रमी संवत् से पूर्व का माना जा सकता है। यहाँ समय-समय पर प्रागैतिहासिक काल और ऐतिहासिक काल के अवशेष मिलते रहे हैं जो इसके पुरातन चरित्र को उजागर करते हैं। यह पश्चिमी उत्तराखंड का मुख्य द्वार है।

ऋषिकेश में प्रमुख आश्रम
गीता भवन
इसकी स्थापना 1944 में गीता प्रेस गोरखपुर की शाखा के रूप में हुई थी। आश्रम के सत्संग भवन में समस्त गीता तथा भगवान राम की जीवनी चित्रों के साथ संगमरमर पत्थर पर उत्कीर्ण है। यहाँ गीता प्रेस गोरखपुर का सस्ता धार्मिक साहित्य और आयुर्वेदिक औषधियां लागत मूल्य पर ही प्राप्त होती है।
शिवानन्द आश्रम
शिवानन्द नगर में निर्मित यह आश्रम विशेष रूप से दर्शनीय है। इसके संस्थापक श्री स्वामी शिवानन्द, जो कि तीन सौ धार्मिक ग्रन्थों के रचयिता थी थे, ने सन् 1936 में इस आश्रम की स्थापना की थी। यह आश्रम विश्व के परमार्थ जगत में एक विशेष स्थान रखता हैं आश्रम की ओर से एक आयुर्वेदिक औषधालय तथा कुष्ठ आश्रम समाज की सेवा कर रहा है। यहाँ स्थापित योग वेदान्त आरण्य विद्यापीठ, ज्ञान के पिपासुओं का प्रशिक्षण केन्द्र है। इस आश्रम को ऋषिकेश के लिए भगवान शिव का भण्डार कहा जाता है।
स्वर्गाश्रम
इस आश्रम की स्थापना स्वामी आत्म प्रकाश काली कमलीवालों ने की थी। इस आश्रम में एक सौ से अधिक कुटियां यात्रियों तथा साधुओं के विश्राम के लिए बनाई गई है। यहां संस्कृत विद्यालय में संस्कृत का अध्ययन निशुल्क कराया जाता है। आश्रम की ओर से अनेक क्षेत्र धर्मशालाएं आदि पर्याप्त संख्या में संचालित की जा रही हैं।
परामार्थ निकेतन
इसकी स्थापना स्वामी शुकदेव महाराज ने की। यहां संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार के लिए एक उच्च स्तरीय संस्कृत विद्यालय, छात्रावास, पुस्तकालय भी है। इस आश्रम में देवी देवाताओं और महापुरुषों की दिव्य झांकियां मनमोहक रूप से चित्रित की हुई हैं।
अन्य आश्रम
ऋषिकेश तीर्थ में इन आश्रमों के अतिरिक्त अन्य भी अनेक आश्रम विभिन्न संप्रदाय अनुयायियों के बने हुए हैं। इनमें साधु संत व गृहस्थी निवास करते हुए अपनी साधनाओं को पूरा करते हैं- कैलाश आश्रम, योग श्री पीठ, योग निकेतन, आनंद धाम आश्रम, कैलाशानंद आश्रम, आध्यात्मिक योगाश्रम, योगी शीलनाथ आश्रम, रामाश्रम, साईं आश्रम, अमृतधाम आश्रम, हरिहर पीठ आश्रम, श्री संतसेवा आश्रम, गीता आश्रम, महर्षि ध्यानपीठ, वेदनिकेतन धाम आदि।
धार्मिक संस्थाएं
यहां अनेक धार्मिक संस्थाएं निरंतर लोकोपकारी कार्यों में व्यस्त रहती हैं। इनमें प्रमुख बाबा काली कमली वाला पंचायत क्षेत्र, पंजाब सिंध क्षेत्र कैलाशानंद मिशन ट्रस्ट, स्वर्गाश्रम ट्रस्ट, रामाश्रम ट्रस्ट, डिवाइन लाइफ सोसायटी, गुरूद्वारा हेमकुण्ड कमेटी, दशनामी अखाड़ा, भरत मन्दिर ट्रस्ट, अवधूत भेष बारहपन्थी योगी महासभा आदि।
प्रमुख मन्दिर
प्रमुख मन्दिरों में भरत मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर,लक्ष्मण मन्दिर,कुब्जाम्रक कुण्डवीर,भद्रेश्वर मन्दिर, काली मन्दिर, चन्द्रेश्वर महादेव, पुष्कर मन्दिर, गोपालमन्दिर, भैरों मन्दिर, तृप्तिबाला मंदिर, शीलनाथ मंदिर, कैलाशाश्रय शंकराचार्य मंदिर, शत्रुघ्न मंदिर, शिवानन्द आश्रम में स्थित शिव मंदिर, ध्रुव मंदिर, बदरीनाथ मन्दिर, पंचदेव मंदिर, स्वर्गनिवास नामक कैलाशानन्द मिशन का तेरह मंजिला मन्दिर, रानी विद्यावती मंदिर, पंचमुखी हनुमान मंदिर, रामेश्वर मंदिर, महेश योगी का शंकराचार्य मंदिर, हरिहर मंदिर, धर्मराज मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, आन्ध्राश्रम मंदिर, हेमकुण्ड गुरूद्वारा, विट्ठल आश्रम मंदिर, वेंकटेश्वर मन्दिर, मनोकामना सिद्ध हनुमान मंदिर आदि हैं।
रिवर राफ्टिंग
विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को सृजनात्मकता की ओर ले जाने के उद्देश्य से उत्तराखण्ड में ऋषिकेश से लगभग तीस किलोमीटर देवप्रयाग वाले मार्ग पर स्थित शिवपुर (ऊँचाई 2026 फीट) से ऋषिकेश तक दो या तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में रिवर राफ्टिंग की बेसिक ट्रेनिंग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा नेशनल एडवेंचर फाउन्डेशन के सहयोग से दी जा रही है। इन शिविरों में दो चरणों में राफ्टिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है।

प्रथम चरण “मैरिन ड्राइव” से शिवपुरी तक (लगभग 12 किलोमीटर) जिसमें ब्लैक मनी, थ्री ब्लाइंड माइंस, इनसिएशन रेपिड्स आते हैं। द्वितीय चरण में शिवपुरी से ऋषिकेश (लगभग 18 किलोमीटर) जिनमें रिटर्न टू सेंटर, रोलर कोस्टर, गोल्फ कोर्स आदि रेपिड्स आते हैं। रिवर राफ्टिंग के लिए प्रतिभागियों का आपसी तालमेल,सूझबूझ व अदम्य साहस आवश्यक होता है, जो उन्हें उच्छृखल, भयानक डरावनी जल धाराओं में रोमांचित कर देता है। रिवर राफ्टिग में प्रयुक्त होने वाली नियोप्रिन रबड़, सिन्थेटिक रेयन व वायु प्रकोष्ठों से भरी राफ्ट, लाइफ जैकेट्स, हेलमेट्स व पैडल/पतवारों को भारतीय स्वास्तिक रबड़ कम्पनी तैयार करती है।
लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।