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March 11, 2025

ऑटो में ही सात लाख रुपये के सोने के आभूषण से भरा बैग भूल गया परिवार, जानिए सिपाही को कैसे मिली सफलता

एक परिवार ऑटो में करीब 13 तोला सोने से भरा बैग भूल गया। कुछ देर बाद जब उन्हें बैग छूटने का अहसास हुआ तो उनमें हड़कंप मचना स्वाभाविक था। गनीमत है उस ट्रैफिक सिपाही की, जिसने आटो को ढूंढ निकाला और बैग को परिवार को लौटा दिया।

बैग में सात लाख रुपये के गहने और उसे ऑटो में भूल जाना, कोई भी सुनेगा तो इस लापरवाही पर विश्वास नहीं करेगा। फिर भी ऐसा हो गया। एक परिवार ऑटो में करीब 13 तोला सोने से भरा बैग भूल गया। कुछ देर बाद जब उन्हें बैग छूटने का अहसास हुआ तो उनमें हड़कंप मचना स्वाभाविक था। गनीमत है उस ट्रैफिक सिपाही की, जिसने आटो को ढूंढ निकाला और बैग को परिवार को लौटा दिया।
मामला मुंबई का है। यहां एक पुलिसकर्मी की तत्परता चर्चा का विषय बन गई है। लाखों के गहनों से भरे बैग को ढूंढ निकालने पर ट्रैफिक पुलिस प्रदीप मोरे की काफी तारीफ की जा रही है। उन्होंने मुंबई से औरंगाबाद जा रहे एक परिवार को उसका सोने के गहनों से भरा बैग ढूंढकर कुछ ही घंटों में लौटा दिया।
दरअसल, मुंबई से औरंगाबाद जा रहा परिवार जल्दबाजी में 13 तोला सोने से भरा बैग ऑटो रिक्शा में ही भूल गया था। दिंडोशी में ऑटो से उतरकर गांव जाने वाली बस में बैठने के बाद उन्हें याद आया कि बैग तो ऑटो रिक्शा में ही रह गया। इस पर परिवार के सदस्यों में हड़कंप मचा। वे बस से उतरे और इधर उधर ऑटो की तलाश करने लगे। उन्हें ऑटो नहीं मिला।
इसके बाद परिवार ने करार पुलिस को शिकायत दर्ज कराई। ऑटो चालक को खोजने के दौरान दिंडोशी ट्रैफिक डिविजन के पुलिस सिपाही प्रदीप मोरे से भी परिवार के लोग मिले, तो उन्होंने बैग खोजने का भरोसा दिलाया। फिर करार पुलिस की मदद से सिपाही प्रदीप मोरे ने सीसीटीवी फुटेज खंगालकर सबसे पहले उस ऑटो रिक्शा का नंबर पता किया।
प्रदीप मोरे ने बताया कि उस नंबर से ऑटो रिक्शा वाले का पता लगाया और फिर साथी पुलिस सिपाही के भाई से संपर्क किया। वह भी पुलिस हैं और चेंबूर में रहते हैं। उन्हें फोन कर उस पते पर तुरंत जाकर ऑटो मालिक से मिलने को कहा गया। ऑटो मालिक से संपर्क करने पर राहत की बात ये रही कि बैग ऑटो में ही पड़ा था। इसका खुद ड्राइवर को भी पता नहीं चला था। बाद में आरसीएफ पुलिस थाने में ले जाकर परिवार को सात लाख के सोने के गहनों के साथ बैग लौटा दिया गया। ट्रैफिक पुलिस प्रदीप मोरे की इस तत्परता की काफी तारीफ की जा रही है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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