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December 27, 2024

यूसीसी की डुगडुगी, भेडिया आया- भेड़िया आया, फिर क्यों नहीं किया लागू

उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने राज्य स्थापना दिवस के मौके पर उत्तराखंड की धामी सरकार पर कड़े सियासी हमले किए। उन्होंने कहा कि यूसीसी के नाम पर सरकार ने भेड़िया आया भेड़िया आया जैसी कहावत को चरितार्थ कर दिया। उन्होंने कहा कि सीएम धामी ने राज्य स्थापना दिवस के मौके पर उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने की सौगात देने का दावा किया था। ये वादा तो सिर्फ कहावत साबित हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गरिमा ने राज्य की धामी सरकार पर राज्य की जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों से धामी सरकार और राज्य का भाजपा संगठन लगातार यूसीसी की डुगडुगी पीट रहा है और तो और लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री धामी यूसीसी लाने वाले पहले राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अपना झूठा प्रचार भी करके आ चुके हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि आज राज्य स्थापना दिवस पर यूसीसी की सौगात उत्तराखंड को देने की बात कह कर एक बार सरकार ने फिर अपने कदम पीछे खींच लिए। इसका कारण यह है कि राज्य की भाजपा सरकार को यह साफ पता चल गया है कि यूसीसी का उत्तराखंड में तो कम से कम कोई अंडर करंट नहीं है। अब वह छद्म हिंदुत्व की आड़ में ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर सकती। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड कांग्रेस की प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि साफ दिख रहा है कि केदारनाथ उप चुनाव में हो रही है अपनी हार सुनिश्चित देख कर धामी सरकार को डर सता रहा है। हार के मार्जिन को कम करने के लिए राज्य की स्थापना दिवस पर यूसीसी लागू नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि यदि राज्य के करोड़ों रुपये यूसीसी की समिति गठित करने में और समिति के सदस्यों की तनख्वाह और बैठकों में बर्बाद कर दिया गया है, तो केदारनाथ उपचुनाव से पहले प्रदेश में यूसीसी लागू करके सरकार दिखाएं। वरना राज्यवासियों से माफी मांगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गरिमा ने कहा कि भाजपा ने उत्तराखंड में सांप्रदायिक माहौल बनाने की भरसक कोशिश की। कभी लव जिहाद, कभी लैंड जिहाद, कभी धर्मांतरण कानून तो कभी थूक जेहाद का खूब प्रचार प्रसार किया। इन नारों के साथ राजनीतिक रोटियां सेकी गई, परंतु जब जब यूसीसी लागू करने की बात होती है तो चुप्पी साध ली जाती है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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