हिमालय के पर्वतों में छिपे खाजाने का रहस्य बता रही हैं युवा कवयित्री किरन पुरोहित
पहाडों की गोद में
पहाड़ों की गोद में हीरा दबा सा है,
पहाड़ों की गोद में हीरा दबा सा है।
इसके भीतर कांति अलौकिक तेज जला सा है,
पहाड़ों की गोद में हीरा दबा सा है।।
जाने क्या है कहानी इसकी,
श्वेत रत्न यह निशानी किसकी।
किसके हित यह दुती अतुलित,
चमकेगा कब हीरा ये दलित।।
इस दुनिया से न जाने क्यों खफा सा है,
पहाड़ों की गोद में हीरा दबा सा है।
कालिदास महर्षि व्यास की पुण्य भूमि में,
अट्ठारह पुराण भरत महान की जन्मभूमि में।
देवी पार्वती के उपवन में मध्य जया सुमनों में ,
सिंचित अलकनंदा धारा के धवल क्षीर से।।
गलित भूमि में जलित ज्योति प्रकाश सा है,
पहाड़ों की गोद में हीरा दबा सा है।
ना तो पूछने वाला कोई,
ना ही कोई राह है ।
हीरा तो हीरा है मात्र,
शेष शून्य सब चाह है।।
जिस के हित के पूर्ण
जगत भी कुछ अनजाना सा है,
पहाड़ों की गोद में हीरा दबा सा है ।
……हिमपुत्री किरन पुरोहित
लेखिका का परिचय —
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता – श्री दीपेंद्र पुरोहित
माता – श्रीमती दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
आयु – 17 वर्ष
अध्ययनरत – कक्षा 12वीं उत्तीर्ण
निवास, कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।