युवा कवि विनय अन्थवाल की कविता-मानव मर्यादा

चरित्र अपना देखो
किस ओर ढ़ल रहा है ।
मलिनता लिए उर
किस ओर बढ़ रहा है
तुम हो पुनीत चेतन
विस्मरण क्यों हो रहा है ।
तम का ये जाल कैसा
तुम पर प्रसर रहा है ।
लज्जित सी हो रही हैं
मर्यादा की लकीरें
खंडित सी हो रही हैं
रस्मों की सब दीवारें ।
निर्मल से प्रेम की अब
धारा भी सूख रही है ।
बढ़ती हुई दिलों में
कलुषता भी दिख रही है ।
स्वार्थ का असर ये
रिश्तों में दिख रहा है ।
पेंसों के मोल अब तो
मानुष भी बिक रहा है ।
थमती नहीं बुराई
व्यभिचार बढ़ रहा है ।
मानुष में अब तो देखो
सदाचार घट रहा है ।
चरित्र हो जो ऐसा
सबका कमल सा पावन
उज्ज्वल हो नेह उर में
निश्छल सा होगा फिर मन ।
चरित्र की ही महिमा
इतिहास गा रहा है ।
पवित्र ही हो जीवन
हर शास्त्र कह रहा है ।
कवि का परिचय
नाम -विनय अन्थवाल
शिक्षा -आचार्य (M.A)संस्कृत, B.ed
व्यवसाय-अध्यापन
मूल निवास-ग्राम-चन्दी (चारीधार) पोस्ट-बरसीर जखोली, जिला रुद्रप्रयाग उत्तराखंड।
वर्तमान पता-शिमला बाईपास रोड़ रतनपुर (जागृति विहार) नयागाँव देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।