विजयदशमीः कौन जीता कौन हारा, रावण करता होगा अट्टहास, खुद ही कीजिए विचार
किसका? क्योंकि युद्ध में भगवान श्री विष्णु के रघुकुल वंशी अवतार श्री राम को विजय प्राप्त हुई थी और रावण के वध के साथ ही उनके जन्म लेने का उद्देश्य भी पूर्ण हुआ। सर्वाधिक प्रासंगिक तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के उत्तरकांड के कुछ दोहों का अध्ययन करने के पश्चात ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे विजयश्री भगवान श्री राम को न प्राप्त हो कर लंकापति रावण को प्राप्त हुई हो। वो दोहे इस प्रकार हैं।
खर दूषन मोहि सम बलवंता।
तिन्हहि को मारई बिनु भगवंता।।
सुर रंजन भंजन महि भारा।
जौं भगवंत लीन्ह अवतारा।।
तौ मैं जाई बैरु हठि करऊँ।
प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ ।।
उपर्युक्त दोहों से ऐसा प्रतीत होता है कि जिस अभिप्राय और मनोकामना की पूर्ति के लिए दशानन रावण ने विष्णु प्रिया लक्ष्मी स्वरूपा जगत जननी भगवती माँ सीता का हरण किया था वो उसके वध के साथ पूर्ण हुआ। आज भी दशानन रावण अट्टहास करता होगा कि हे मूर्खों ये विजय दिवस मेरा है। मैंने भगवान हरि को अवतार ले कर मेरा वध करने के लिए बाध्य किया और धन्य हैं, वो हरि जिन्होंने अपने दास की मनोकामनाओं कि पूर्ति के साथ साथ मेरा और सम्पूर्ण राक्षस जाति का उद्धार किया। मैं धन्य हुआ कि मुझे स्वयं श्री हरि के हाथों मोक्ष की प्राप्ति हुई। आप स्वयं विचार करें कि विजयी कौन हुआ ?
लेखक का परिचय
नाम-ब्राह्मण आशीष उपाध्याय (विद्रोही)
पता-प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
पेशे से छात्र और व्यवसायी युवा हिन्दी लेखक ब्राह्मण आशीष उपाध्याय #vद्रोही उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के एक छोटे से गाँव टांडा से ताल्लुक़ रखते हैं। उन्होंने पॉलिटेक्निक (नैनी प्रयागराज) और बीटेक ( बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय से मेकैनिकल ) तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि के छात्र हैं। आशीष को कॉलेज के दिनों से ही लिखने में रुचि है। मोबाइल नंबर-75258 88880
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।