शहरों के नाम बदलने के लिए आयोग बनाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज, कहा- देश में और कोई मुद्दे नहीं हैं
विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर शहरों, सड़कों, इमारतों और संस्थान के नाम बदलने के लिए आयोग बनाने की मांग की बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर बड़े सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि, आप इस याचिका से क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या देश में और कोई मुद्दे नहीं हैं? आप देश को फिर से उबलते हुए देखना चाहते हैं। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने खूब खरी-खरी सुनाई। कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि भारत पर कई बार हमला किया गया, राज किया गया, यह सब इतिहास का हिस्सा है। आप सलेक्टिव तरीके से इतिहास बदलने को नहीं कह सकते। अब इस मामले में जाकर क्या फायदा है? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कोर्ट ने कहा है कि देश अतीत का कैदी बन कर नहीं रह सकता। धर्मनिरपेक्ष भारत सभी का है। देश को आगे ले जाने वाली बातों के बारे में सोचा जाना चाहिए। एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया था कि क्रूर विदेशी आक्रांताओं ने कई जगहों के नाम बदल दिए। उन्हें अपना नाम दे दिया। आज़ादी के इतने साल बाद भी सरकार उन जगहों के प्राचीन नाम फिर से रखने को लेकर गंभीर नहीं है। उपाध्याय ने यह भी कहा था कि धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की हज़ारों जगहों के नाम मिटा दिए गए। याचिकाकर्ता ने शक्ति पीठ के लिए प्रसिद्ध किरिटेश्वरी का नाम बदल कर हमलावर मुर्शिद खान के नाम पर मुर्शिदाबाद रखने, प्राचीन कर्णावती का नाम अहमदाबाद करने, हरिपुर को हाजीपुर, रामगढ़ को अलीगढ़ किए जाने जैसे कई उदाहरण याचिका में दिए थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
याचिकाकर्ता ने शहरों के अलावा कस्बों के नामों को बदले जाने के भी कई उदाहरण दिए थे। उन्होंने इन सभी जगहों के प्राचीन नाम की बहाली को हिंदुओं के धार्मिक, सांस्कृतिक अधिकारों के अलावा सम्मान से जीने के मौलिक अधिकार के तहत भी ज़रूरी बताया था। याचिका में अकबर रोड, लोदी रोड, हुमायूं रोड, चेम्सफोर्ड रोड, हेली रोड जैसे नामों को भी बदलने की ज़रूरत बताई गई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जस्टिस के एम जोसेफ और बी वी नागरत्ना की बेंच ने याचिका में लिखी गई बातों को काफी देर तक पढ़ा। इसके बाद जस्टिस जोसेफ ने कहा कि आप सड़कों का नाम बदलने को अपना मौलिक अधिकार बता रहे हैं? आप चाहते हैं कि हम गृह मंत्रालय को निर्देश दें कि वह इस विषय के लिए आयोग का गठन करे? अपने मामले की खुद पैरवी कर रहे उपाध्याय ने कहा कि सिर्फ सड़कों का नाम बदलने की बात नहीं है। इससे ज़्यादा ज़रूरी है इस बात पर ध्यान देना कि हज़ारों जगहों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मिटाने का काम विदेशी हमलावरों ने किया। प्राचीन ग्रन्थों में लिखे उनके नाम छीन लिए। अब वही नाम दोबारा बहाल होने चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
क्या आप देश को उबलते हुए रखना चाहते हो
जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि, भारत आज एक धर्मनिरपेक्ष देश है. आपकी उंगलियां एक विशेष समुदाय पर उठाई जा रही हैं, जिसे बर्बर कहा जा रहा है। क्या आप देश को उबलते हुए रखना चाहते हैं। हम धर्मनिरपेक्ष हैं और संविधान की रक्षा करने वाले हैं। आप अतीत के बारे में चिंतित हैं और वर्तमान पीढ़ी पर इसका बोझ डालने के लिए इसे खोद रहे हैं। इस तरीके से और अधिक वैमनस्य पैदा होगा। भारत में लोकतंत्र कायम है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारत ने सभी को किया आत्मसात
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है, जिसके कारण भारत ने सभी को आत्मसात कर लिया है। उसी के कारण हम साथ रह पाते हैं. अंग्रेजों की बांटों और राज करो की नीति ने हमारे समाज में फूट डाल दी। अदालत ने कहा कि, हमें यह ध्यान में रखना होगा कि यह न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत मामले को देख रहा है कि न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने का काम सौंपा गया है। प्रस्तावना के संदर्भ में भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. इसे नौ जजों ने बरकरार रखा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अकबर ने सबको साथ लाने की कोशिश की
जस्टिस जोसेफ ने कहा, “आपने अकबर रोड का नाम बदलने की भी मांग की है. इतिहास कहता है कि अकबर ने सबको साथ लाने की कोशिश की। इसके लिए दीन ए इलाही जैसा अलग धर्म लाया। उपाध्याय ने जवाब दिया कि इसे किसी सड़क के नाम तक सीमित न किया जाए, जिन लोगों ने हमारे पूर्वजों को अकल्पनीय तकलीफें दीं। जिनके चलते हमारी माताओं को जौहर (जीते जी आग में कूद कर जान देना) जैसे कदम उठाने पड़े। उन क्रूर यादों को खत्म करने की ज़रूरत है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आप समय को पीछे ले जाना चाहते हैं?
बेंच की सदस्य जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हम पर हमले हुए, यह सच है। क्या आप समय को पीछे ले जाना चाहते हैं? इससे आप क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या देश में समस्याओं की कमी है? उन्हें छोड़ कर गृह मंत्रालय अब नाम ढूंढना शुरू करे? जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा कि हिंदुत्व एक धर्म नहीं, जीवन शैली है। इसमें कट्टरता की जगह नहीं है। हिंदुत्व ने मेहमानों और हमलावरों सब को स्वीकार कर लिया। वह इस देश का हिस्सा बनते चले गए। बांटो और राज करो की नीति अंग्रेजों की थी। अब समाज को बांटने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नहीं मिली याचिका वापस लेने की इजाजत
जजों के रुख को भांपते हुए याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने प्रयास किया कि याचिका खारिज न हो, बल्कि कोर्ट से वापस लेकर सरकार को विचार के लिए सौंपने की अनुमति मिल जाए। जजों ने इससे भी मना कर दिया। उन्होंने याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस जोसेफ ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि आप सिर्फ मुद्दा गर्म रखना चाहते हैं। धर्मनिरपेक्ष संस्थाओं से ऐसा कुछ करवाना चाहते हैं जो धर्मनिरपेक्ष नहीं है। हमारा स्पष्ट मानना है कि हम अतीत के कैदी बन कर नहीं रह सकते। इस बात की अनुमति नहीं दी जा सकती कि दुखद अतीत आज के भाईचारे को खत्म करे।

Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।