खिड़की का रहस्य और बच्चों का कर दिया बंटवारा (अंतिम कहानी)
रेलगाड़ी के डब्बे की तरह मकानों की लाइन। सभी घर एक दूसरे से जुड़े हुए। 60 के दशक में किसी कालोनी में मकान कुछ इसी तरह के होते थे। यही नहीं तब यदि कोई जमीन का टुकड़ा खरीदकर मकान भी बनाता था तो कमरे भी लाइन के रूप में ही खड़े करता था। जैसे अब सड़क किनारे दुकानों की पंक्ति होती है। शुरूआत में अलग-बगल दो कमरे खड़े किए। जैसे-जैसे पैसा आता जाता, तो कमरों की संख्या बढ़ने लगती। इस तरह जब कई कमरों का वाला मकान हो जाता था तो वह रेलगाड़ी की तरह ही नजर आता। तब सलीके से जो मकान होते, उसे कोठी कहा जाता। ऐसी कोठियां शहर में प्रतिष्ठित व नामी सेठों की होती थी।
दूहरादून में एक सरकारी कालोनी में रह रहे बट्टू के उसकी पड़ोस की महिला विदूषी से अवैध संबंध रहे, जो कई साल तक चले। विदूषी और बट्टू के घर के कमरे रेलगाड़ी के डिब्बे की तरह एक दूसरे से जुड़े हुए थे। बट्टू के कमरा शिफ्ट करने के बाद उसके पुराने कमरे में एक कलाकार का परिवार आया। इस कमरे का ही दोष था कि कलाकार की पत्नी भी कुलटा हो गई। यदि दाएं से मकान में नंबर डाले जाएं तो पहले नंबर पर बट्टू का कमरा था। दूसरे पर विदूषी का। तीसरे नंबर के मकान में एक पंडितजी रहते थे। पंडितजी के दो कमरे के मकान में एक कमरे की खिड़की पर लगी लोहे की एक सलाख (सरिया) गायब थी।
इस सरिया के गायब होने के पीछे भी एक कहानी थी। यानी एक नंबर से लेकर तीन नंबर के मकान में रहने वालों में कोई न कोई कभी न कभी रासलीला का पात्र रहा। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि ये कुलटा की कहानी लगातार के तीन मकानों के इर्दगिर्द ही घूमती रही। इस कहानी की नींव करीब साठ के दशक से पहले पड़ गई थी। इस कहानी से न तो बट्टू ने ही सबक लिया, न ही विदूषी ने और न ही कलाकार की पत्नी रामी ने। सभी जाने-अनजाने में कुलटा के पात्र बनते चले गए।
पंडितजी वाले मकान की गायब एक सरिया को देखकर हर किसी के मन में यही सवाल उठता कि इस सरिया को किसने तोड़ा। मजबूत खिड़की की मजबूत सरिया का गायब होना भी आसान नहीं था। तब इस खिड़की के पीछे रहने वाले एक आठ साल के बच्चे ने अपने पिता से पूछा कि सामने के मकान की खिड़की में शायद एक सरिया लगाना मिस्त्री भूल गया। उसके पिता काफी मुंहफट इंसान थे।
जब उसने कई बार पिता से यही सवाल किया कि पंडितजी के घर की सरिया क्यों गायब है। इस पर उसके पिता ने टाल दिया। कहा अभी तू छोटा है। अच्छा व बुरा नहीं समझता है। यह रहस्य तब का है, जब तू पैदा भी नहीं हुआ था। जब कुछ और बड़ा हो जाएगा, तब तूझे बता दूंगा। इसके करीब दो साल बाद फिर बच्चे ने अपने पिता से वही सवाल दोहराया। इस पर उन्होंने बच्चे को जो कहानी सुनाई वह इस प्रकार थी।
पंडितजी से पहले उस मकान में जंगी नाम का एक व्यक्ति रहता था। जब उस मकान में जंगी आया तो उसके दो बेटे थे। तब किसी भी सरकारी आफिस में अपने धोबी, नाई, टेलर व मोची सब होते थे। जंगी भी छोटा मोटा कर्मचारी था। जंगी की पत्नी रागिनी बड़ी खूबसूरत थी। जंगीं के घर उसके एक मित्र बिज्जू का आना जाना था। बिज्जू कुंवारा था। वह भी काफी सुंदर व बलिष्ठ युवक था और वह किसी दूसरे संस्थान में टैक्निकल कर्मचारी था। जंगी व बिज्जू की घनिष्ठता लगातार बढ़ रही थी।
सरकारी क्वार्टर में आने के बाद जंगी की पत्नी के दो बच्चे और हुए। जंगी जैसे ही ऑफिस को जाता तो पीछे से बिज्जू उसके घर पहुंच जाता। संदेह होने पर एक दिन जंगी अचानक ऐसे समय घर पहुंचे गया, जिसकी उम्मीद न तो बिज्जू को थी और न ही रागिनी को। घर के दरवाजे बंद थे। जंगी ने द्वार खटखटाया। भीतर बिज्जू था। यह पता चलते ही जंगी ने बाहर से कुंडा लगाकर बिज्जू को बंद कर दिया।
जंगी ने होहल्ला मचाकर मोहल्ले के लोगों को एकत्र किया। भीतर बिज्जू के साथ जंगी की पत्नी बंद थी। जब काफी लोग एकत्र हो गए, तो सभी ने दरवाजे को खोलने के लिए आवाज दी। काफी देर बाद जंगी की पत्नी रागिनी ने दरवाजा खोला। वह ऐसी सूरत बनाकर बाहर आई, जैसे गहरी नींद से उठी हो।
जंगी के हाथ में डंडा था। उसने कमरे के भीतर जाकर बिज्जू को खोजने के लिए कोना-कोना छान मारा, लेकिन बिज्जू नहीं मिला। मिलता भी कैसे। वह तो मकान के पीछे की तरफ बनी खिड़की की एक सरिया तोड़कर भाग गया था।
इस घटना के बाद जंगी अपनी पत्नी रागिनी को साथ रखने को तैयार नहीं हुआ। उसने कुछ परिचित और मोहल्ले के लोगों को एकत्र कर पंचायत बुलाई। साथ ही बिज्जू को भी बुलाया गया। फैसले के अनुरूप बिज्जू पत्नी के तौर पर रागिनी को अपने पास रखने को राजी हो गया। वह तो पहले से ही यही चाह रहा था। रागिनी भी बिज्जू के साथ रहने पर खुश थी, लेकिन उसने बिज्जू के घर जाने से पहले एक बंटवारे की शर्त रख दी। यह बंटवारा था बच्चों का।
रागिनी का कहना था कि दो बड़े बेटों का बाप जंगी है और उनके बाद के बेटे बिज्जू के हैं। ये बंटवारा भी हो गया। दोनों ही अपने-अपने परिवार के साथ खुश थे। नए पति के यहां रागिीनी के तीन बच्चे और हुए। आज इस दुनियां में न तो जंगी है और न ही रागिनी। हां दोनों के नाती-पोते जरूर हैं। वहीं रेलगाड़ी के डिब्बे जैसे मकानों के कमरे भी समय से साथ खंडहर होने लगे हैं। प्रकाश की मौत के बाद उसके बेटे को सरकारी नौकरी मिल गई थी। कमरा नंबर दो में रहने वाले लालजी ने भी सेवानिवृत्ति के बाद अपना मकान बना लिया था। उसकी भी मौत हो गई है। पत्नी विदूषी भी इस दुनियां को छोड़ गई। बट्टू ने भी सेवानिवृत्ति के बाद अपना मकान बना लिया। सैंटी के पुत्र के साथ वह खुश है, जो अब युवा हो चुका है। जंगी वाले मकान में रहने वाले पंडितजी भी सेवानिवृत हो चुके हैं। वह भी नया मकान बनाकर कहीं दूसरे स्थान पर बस गए थे। वह भी इस दुनियां में नहीं रहे। सिर्फ दिखाई देती है खंडहरनुमा घर में पंडितजी के मकान की वो खिड़की, जिसकी सरिया आज भी गायब है। (समाप्त)
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।