शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता- दर्द भरी दास्तां
काम तो थे जिंदगी में बहुत मगर,
इस मंजर ने मुझे खोमोश करा दिया।
किस किस को सुनाऊं दर्द भरी दास्तां,
यहां तो शैतानों ने मुझे भी चुप करा दिया।।
सुन ऊपर बैठे ए मालिक मेरे,
दुनियां को क्यों लाशों का ढेर बना दिया।
कितनी दर्द भरी दास्तां है दुनिया की,
कोरोना ने सबको मिट्टी में मिला दिया।।
दोषी कौन कौन इन हालातों के,
शायद किसी ने होता, हमें बता दिया।
हवा बिक रही थी जब सासों के लिए,
क्यों मालिक तूने भी शैतानों का ही साथ दिया।।
अरे अपने वतन में ये कैसा इंसाफ,
अपनों को छूने से भी डरा दिया।
तड़पते रहे अपनों के इंतजार में वे,
हवा बिना टूटती सांसों ने उसे खामोश करा दिया।।
मालिक कर दे अब सब पर मेहरबानी,
मैंने अपना शीश तेरे आगे झुका दिया।
माफ मत करना हवा के सौदागरों को,
सासों के लिए जिन्होंने हवा को भी छुपा दिया।।
अब तो बख्श दे इंसान को मालिक,
क्यों तूने बेकसूरों की जान को लिया।
इलज़ाम तुझ पर ऐसा न लगे मालिक,
कोरोना की जंग में तूने ही इंसान को हरा दिया।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।