शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-कल शायद हम न होंगे
क्यों नहीं सुनते दिल से साहेब,
कल शायद हम यहाँ न होंगे।
शिकायतें थी जो हमसे साहेब,
मिलकर हमें सुलझाने होंगे।
यूँ ही चुप रहे जो साहेब,
फिर दिल में चुभते फसाने होंगे।
फिर हमको याद करके क्या पछताना,
जब हम कल इस जहां में न होंगे।।
अभी तो बात करने से कतराते हमसे,
कल बोलने के हजार बहाने होंगे।
खुशी के पल न जाने दो आज साहेब,
फिर शायद कल हम यहाँ न होंगे।।
यादों का घोंसला रह जायेगा मन में,
शायद घोंसले में तिनके ही न होंगे।
तिनके तो दूर उड़ जायेंगे आसमां में,
फिर न जाने तिनके किस जहां में होंगे।।
जिद इतनी भी ठीक नहीं साहेब,
हम ही सदा फसाने होंगे।
घुटकर जीने से तो भला साहेब,
फसाने मिलकर सुलझाने होंगे।।
आ गए जो मोड़ जीवन में साहेब,
वो मोड़ जीवन से हटाने होंगे।
बस खुशी खुशी छोड़ो ये नाराजगी,
फिर शायद कल हम यहां न होंगे।।
यहाँ न होंगे, यहाँ न होंगे।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।