शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-क्यों गांव से दूरियां हो गई
अब तो कोई चहल पहल नहीं गांवों में,
जैसे पहले हुआ करती होगी।
आ जाते थे सुख दुःख में मिलन करने,
खुशियां दिलों में भर देती होंगी।।
अब तो वक्त नहीं अपनों के पास,
क्यों दूरियां मन में भर दी होंगी।
क्यों बदल रहा इंसान यहां,
क्या गांव की याद नहीं आती होगी।।
पुरुखों का घर सूना पड़ा है जो आज,
क्या पंछियों ने ही रश्मे निभानी होगी।
वो तो पंछियों की मासूमियत है,
कभी कभी तो घर आ जाया करती होंगी।।
इंसानों से तो परिंदे भले है,
जो गांव के घर आ जाया करती होंगी।
कहते परिदें हम तो बेजुबान हैं,
गांव की गलियां ही हमें आबाद करनी होंगी।
परिंदे कहते अब तो लौट आओ गांव,
क्या हमने ही घर की हिफाजत करनी होगी।
तुम्हारे मां बाबा की यादें इस घर में,
क्या हमने ही अब शहादत देनी होगी।
लौट आओ समय रहते गांव अब तुम,
नहीं क्या घर की गली सजानी होगी।
हम भी अब बूढ़ी हो चुकी हैं
ख़तम होने को है अब हमारी जवानी।।
अब तो””””””””””””””””””””””””””””में।
जैसी””””””””””””””””””””””””””होगी।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।