शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-न निकले आंसू बेवजह
न निकले आंसू बेवजहआज दूरियां बनी है दिलों में,
देख रहा मैं चारों ओर से।
मैं तो बंधा रहूंगा सदा,
अपनों की प्रेम की डोर से।।
न निकले आंसू बेवजह,
अपनों की पलकों की कोर से।।
अंधकार छाया यहां चारों ओर से,
बादल छाए जैसे घनघोर से।
मिटेंगे कब ये काले बादल दिलों से,
मिटाना ही होगा इन्हे हमको,
दिशा दिशा हर छोर से।
न निकले आंसू बेवजह,
अपनों की पलकों की कोर से।।
यहां तो राग द्वेष घृणा क्रोध,
घेरे है सबको चारों ओर से।
यही असली दुःख के कारण,
मिटा दो इनको हर छोर से।
न निकले आंसू बेवजह,
अपनों की पलकों की कोर से।।
आज अशांत सा मन सबका यहां,
बांध रहा कातिल शत्रु डोर से।
सब अपने एक बनें तो,
मिटा देंगे कातिल को हर छोर से।
न निकलें आंसू बेवजह,
अपनों की पलकों की कोर से।।
करें नियमों का प्रहार मिलकर,
हम सभी हर छोर से,
तभी कातिल शत्रु निष्प्राण होगा,
नहीं बहेगा आंसू फिर,
अपनों की पलकों की कोर से।।
पलकों की कोर से, पलकों की कोर से।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।






बहुत सुन्दर रचना?????