शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-हिम कवि आ रहा
हिम कवि आ रहा
घर छोड़े वर्षों बीत गए,
मैं हिमगिरि पर ही घूम रहा।
याद दिलाती मुझे बहुत उनकी,
ये पंक्तियां चन्द्र की मैं लिख रहा।।
लिख डाली न जाने कैसे,
मन की वेदना मैं लिख रहा।
मैं उनके अंतिम करुण स्वर,
आज भी हृदय से सुन रहा।।
न जाने कैसे हृदय में घर कर गए,
मैं गीत हृदय से उनके गा रहा।
प्रातः पंछियों के मधुर स्वरों में,
उनके ही स्वर मैं सुन रहा।।
लगता है जैसे बसंत में,
उनका यहां आगमन हो रहा।
प्रकृति में महक बिखेरने,
मानो लगता हिम कवि आ रहा।।
न जाने क्यों मेरे हृदय में,
आहट पैरों की लिए चन्द्र आ रहा।
कैसे मिटा लूं हृदय से नाम उनका,
नव जीवन लिए चन्द्र आ रहा।।
धरती भी खुश दिख रही आज,
माटी में नव अंकुर जो आ रहा।
खुश हूं मैं हृदय से बहुत,
मैं उनके ही गीत जो गा रहा।।
पुष्प, माटी, कोमल कलियां,
हृदय प्रफुल्लित उनका हो रहा।
राह देखती उनकी आंखें,
प्रकृति में हिम कवि जो आ रहा।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।