शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता- पथ पर चलता जा
पथ पर चलता जा
हे पथिक! तू निर्भय होकर
पथ पर अपने बढ़ता चल।
राहों में कर रहीं इन्तजार ठोकरें
उनको दरकिनार तू करता चल।
मत कर परवाह पांव के छालों की
कष्ट तू उनके सहता चल।
यही तो है जीवन का लक्ष्य
हे पथिक!
तू निरंतर अपने पथ पर बढ़ता चल।।
हैं राहों में शूल बहुत नुकीले,
कांटों को पथ से हटाता चल।
न बहे बेवजह रक्त तेरा,
पथ में पुष्प सफलता के बोता चल।
हे पथिक!
तू निरंतर अपने पथ पर बढ़ता चल।।
आसान नहीं किसी भी पथ पर चलना,
आसान तू मंजिलें करता चल।
उमस भरी हो गई है दोपहरी,
तन से पसीना बहाता चल।
कंठ सूख गए हों प्यास से गर तो
अश्रु से अपना कंठ भिगोता चल
मिल जाती हैं मंजिले जरूर एक दिन
तू खुद के कष्ट भुलाता चल।
हे पथिक!
तू निरंतर अपने पथ पर बढ़ता चल।।
सहन कर लो कष्ट यहां तुम,
तभी तो होगी,कुछ हलचल।
मेहनत का फल मीठा होता,
बीज मिठास के बोता चल।
हे पथिक!
तू निरंतर अपने पथ पर बढ़ता चल।।
बढ़ता चल, बढ़ता चल, बढ़ता चल।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना????