शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता- पुष्प कहे माली से

पुष्प कहे माली से
पुष्प कहे माली सेआज,
तेरा मेरा अंत नहीं।
टूट भी जाऊं डाली से तो,
मेरे जीवन का अंत नहीं।।
सच है तूने सींचा मुझको,
मेरे बिना तेरा बसंत नहीं।
सूख भी जाऊं डाली पर तो,
फिर भी मेरा अंत नहीं।।
सूखकर बीज बन जाऊं यदि मैं,
फिर भी जीवन का अंत नहीं।
नव जीवन फिर लेकर आऊं मैं,
इस माटी से मेरा अंत नहीं।।
तेरे खातिर ही तो खड़ा धूप में,
तेरे सपनों का अंत नहीं।
मिट भी गया इस जहां से मैं तो,
फिर भी मेरा अंत नहीं।।
पर मेरी पीड़ा कोई नहीं जाने,
बेवजह तोड़े तू कभी डरता नहीं।
तेरे कारण खुशबू बिखेरता,
खुशबू का फिर भीअंत नहीं।।
सौभाग्यशाली मैं खुद को समझता,
राह किसी भी जाऊं मुझे दुःख नहीं।
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे में,
मैं चढ़ता, मेरा अंत नहीं।।
कभी मैं अर्थी पर चढ़ता रहता,
कभी मैं बनता हार गले का।
लिपटकर उनसे, रहता मैं,
उनकी शोभा कम करता नहीं।
यही तो असली जीवन है मानव,
फिर भी मेरा अंत नहीं।
टूट भी जाऊं डाली से तो,
मेरे जीवन का अंत नहीं।।
अंत नहीं! अंत नहीं!
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना????