शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-क्या मेरे मन के आखर यूं ही
क्या मेरे मन के आखर यूं ही
क्या मेरे मन के आखर यूं ही,
खुद में सिमटकर रह जाएंगे।
लिखता हूं दिल की गहराइयों से मैं,
क्या आसुओं में यूं ही बह जायेंगे।
राह में कांटे नुकीले बहुत पड़े हैं,
क्या आखर कांटों से मुड जाएंगे।
पर शायद मेरे आखरों से नुकीले कांटे,
राहों से दूर बहुत ही उड़ जाएंगे।।
आगे गहरी खाईयां बहुत गहरी सी हैं,
क्या आखर खाइयों में गुम हो जायेंगे।
पर लगता सच्चे दिल से मुझको,
शायद आखर उनसे पार हो जाएंगे।।
आगे भंवर गहरे तेज पानी की फुहारें,
क्या आखर आज उनसे तर पायेंगे।
पर विश्वास मुझे अपने आखरों पर,
मंजिलें वे जल्दी ही पा पायेंगे।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।