Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

February 6, 2025

शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-क्या मेरे मन के आखर यूं ही

श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं।

क्या मेरे मन के आखर यूं ही

क्या मेरे मन के आखर यूं ही,
खुद में सिमटकर रह जाएंगे।
लिखता हूं दिल की गहराइयों से मैं,
क्या आसुओं में यूं ही बह जायेंगे।

राह में कांटे नुकीले बहुत पड़े हैं,
क्या आखर कांटों से मुड जाएंगे।
पर शायद मेरे आखरों से नुकीले कांटे,
राहों से दूर बहुत ही उड़ जाएंगे।।

आगे गहरी खाईयां बहुत गहरी सी हैं,
क्या आखर खाइयों में गुम हो जायेंगे।
पर लगता सच्चे दिल से मुझको,
शायद आखर उनसे पार हो जाएंगे।।

आगे भंवर गहरे तेज पानी की फुहारें,
क्या आखर आज उनसे तर पायेंगे।
पर विश्वास मुझे अपने आखरों पर,
मंजिलें वे जल्दी ही पा पायेंगे।।

कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।

Website |  + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page