शिक्षक एवं कवि रामचन्द्र नौटियाल की कविता-ओ मेरे मीत
ओ मेरे मीत
ओ मेरे मीत!
गाऊं मैं कैसे-कैसे
तपती धूप के पसीने में
उलझ जाते हैं मेरे गीत !!
ओ मेरे मीत !………
शरीर को तड़पन
देखकर मजदूर बेचारा
खेत में किसान बेचारा
काम ही जिसका गीत है
“कर्म ही जीवन”जिसकी रीत है
ओ मेरे मीत !……….
पढ़ लिख कर,
लिख पढ़ कर,
जिसने अपनी आंखें भी
कमजोर कर डाली ।
हाथों में डाले छाले
ओ मेरे मीत!…….
डिग्री डिप्लोमा का बोझा लिए
बेरोजगारी के अभिशाप को साथ लिए
तथाकथित समाज के
बिच्छू के डंक जैसे
तानों की मार को लिए
जा रहा हो साथ
वह मेरे मीत !…..
जहां वह पैसों की मारामारी
नेता और अफसर हो भ्रष्टाचारी
लोकतंत्र बन गया हो रोकतंत्र
जनतंत्र बन गया हो धनतंत्र
ओ मेरे मीत !……..
शादी हो जहां दहेज का जरिया
लड़की के नाम पर भ्रूण हत्या !
ओ मेरे मीत !……
अपने को जहां वोट के नाम पर
बेचे इंसान
लोकतंत्र के नाम पर
सैकड़ों अपराध कर
माफिया बन जाए नेता
ओ मेरे मीत !……
सच बोलने की जहां सजा मिले
लोकतंत्र को भी रोना आए
ऐसे देख कैसे सुनाऊं मैं गीत
ओ मेरे मीत !
गाऊं मै कैसे कैसे
तपती धूप के पसीने में
उलझ जाते मेरे गीत !!
कवि का परिचय
रामचन्द्र नौटियाल राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गड़थ विकासखंड चिन्यालीसौड, उत्तरकाशी में भाषा के अध्यापक हैं। वह गांव जिब्या पट्टी दशगी जिला उत्तरकाशी उत्तराखंड के निवासी हैं। रामचन्द्र नौटियाल जब हाईस्कूल में ही पढ़ते थे, तब से ही लेखन व सृजन कार्य शुरू कर दिया था। जनपद उत्तरकाशी मे कई साहित्यिक मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दे चुके हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।