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September 12, 2025

अमेरिका और नाटो के मददगारों को तलाश रहा तालिबान, भारतीय कॉन्स्यूलेटों में छाने कागजात, रो पड़े ब्रिटिश सैनिक

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद जो कुछ घट रहा है, उसे ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। भले ही तालिबानी पिछली बातों को माफ करने की बात कह रहा हो, लेकिन हकीकत उलट है।

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद जो कुछ घट रहा है, उसे ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। भले ही तालिबानी पिछली बातों को माफ करने की बात कह रहा हो, लेकिन हकीकत उलट है। तालिबान अमेरिका और नाटो के मददगारों की तलाश रहा है। बंद पड़े भारतीय कॉन्स्यूलेटों में जाकर वहां भी कागजात को खांगाला गया। महिलाओं की काम करने की छूट की घोषणा भी हवाई साबित हो रही है। महिला न्यूज एंकर को काम करने से रोका गया तो उसने मदद की गुहार लगाई। पिछले कुछ दिनों से अफगानिस्तान में जो माहौल है, उसे देख ब्रिटिश सैनिक भी रो पड़े। इसी अफरातफरी में अफगानिस्तान छोड़ने के प्रयास में कई को जान गंवानी पड़ी। इनमें युवा फुटबालर की भी जहाज से गिरने के कारण मौत हो गई थी। अफगानिस्तान की आजादी के दिन 19 अगस्त को हुए प्रदर्शन में भी गोलियां चलने की सूचनाएं आई और इसमें कई की जान चली गई। यहां आज तक के घटनाक्रमों के संबंध में विस्तार से बताया जा रहा है।
मददगारों की सूची तैयार कर उन्हें तलाश रहा तालिबान
संयुक्त राष्ट्र के एक गोपनीय दस्तावेज में कहा गया है कि तालिबान अमेरिका और नाटो बलों के साथ काम करने वाले लोगों की तलाश में जुटा है। हालांकि आतंकी संगठन ने कहा था कि वह विरोधियों से बदला नहीं लेगा। रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के लिए खतरे का आकलन करने वाले सलाहकारों ने तैयार किया है और एएफपी ने भी इसे देखा है। रिपोर्ट के अनुसार आतंकी संगठन के पास उन व्यक्तियों की प्राथमिक सूची है, जिन्हें वह गिरफ्तार करना चाहता है।

दस्तावेज के अनुसार, सबसे अधिक जोखिम में वे लोग हैं जिनकी अफगान सेना, पुलिस और खुफिया इकाइयों में केंद्रीय भूमिका थी। साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान उन व्यक्तियों और उनके परिवार के सदस्यों का ‘लक्षित डोर-टू-डोर दौरा’ कर रहे हैं, जिन्हें वे पकड़ना चाहते हैं। आतंकवादी काबुल हवाई एयरपोर्ट के रास्ते में व्यक्तियों की भी स्क्रीनिंग कर रहे हैं। साथ ही राजधानी और जलालाबाद सहित मुख्य शहरों में चौकियां स्थापित की गई हैं।
इस दस्तावेज को नॉर्वेजियन सेंटर फॉर ग्लोबल एनालिसिस ने लिखा, यह संगठन संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों को खुफिया जानकारी प्रदान करता है। समूह के कार्यकारी निदेशक क्रिश्चियन नेलेमैन ने एएफपी को बताया कि-वे उन लोगों के परिवारों को निशाना बना रहे हैं जो स्वयं को उन्हें सौंपने से इनकार करते हैं। उनके परिवारों पर शरिया कानून के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है और सजा दी जा रही है।
उन्होंने कहा, ‘संभावना है कि जो व्यक्ति पहले नाटो/अमेरिकी सेना और उनके सहयोगियों के साथ काम कर रहे थे, उनके परिवार के सदस्यों को प्रताड़ित किया जाएगा और यातना दी जाएगी। यह आगे पश्चिमी खुफिया सेवाओं, उनके नेटवर्क, तरीकों और क्षमता को तालिबान, आईएसआईएस और अन्य आतंकी खतरों का सामना करने में मुश्किल में डाल देगा।

तालिबान ने भारतीय कॉन्स्यूलेटों की ली तलाशी
तालिबानियों ने राजधानी कंधार और हेरात में बंद पड़े भारतीय कॉन्स्यूलेटों की तलाशी ली। सरकारी सूत्रों ने यह जानकारी दी। जानकारी के अनुसार उन्होंने वहां कुछ कागजात तलाशे। इस दौरान में वहां पार्क की गई कारों भी अपने साथ ले गए। सूत्र बताते हैं कि तालिबान के सदस्‍य राजधानी कंधार और हेरात स्थित भारतीय कॉन्स्यूलेट पहुंचे और वहां कागजातों की तलाशी ली। यही नहीं वे दोनों कॉन्स्यूलेट में पार्क किए गए वाहनों को भी ले गए। राजधानी काबुल पर नियंत्रण करने के बाद तालिबानियों ने घर-घर जाकर तलाशी अभियान प्रारंभ किया है। वे उन अफगानियों को तलाश रहे हैं, जिन्‍होंने राष्‍ट्रीय खुफिया एजेंसी, नेशनल डायरेक्‍टोरेट ऑफ सिक्‍युरिटी में काम किया है। काबुल में दूतावास के अलावा भारत, अफगानिस्‍तान में चार कॉन्स्यूलेट संचालित करता था। कंधार और हेरात के अलावा भारत का मजार-ए- शरीफ में भी कॉन्स्यूलेट था। जिसे तालिबान के मुल्‍क पर नियंत्रण के कुछ दिन पहले ही बंद कर दिया गया था।

तालिबान नहीं चाहता था भारत खाली करे दूतावास
तालिबान नहीं चाहता था कि भारत काबुल का दूतावास खाली करे। सूत्रों के मुताबिक, इस बाबत उसने भारत को संदेश भी भेजा था। भारतीय राजनयिकों को बने रहने का अनुरोध सीधे तौर पर नहीं किया गया था, बल्कि संपर्क सूत्र के जरिये किया गया था। तालिबान के कतर स्थित राजनीतिक दफ्तर के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्टैनिजई ने काबुल और दिल्ली के सूत्र के जरिये भारत को इस बात के लिए मनाने की कोशिश की थी कि भारतीय राजनयिक काबुल से न जाएं। स्टैनिकजई तालिबान के शीर्ष नेताओं में शुमार हैं।
भरोसा दिलाने की कोशिश
सूत्रों के मुताबिक, 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद जब भारत अपने राजनयिकों को निकालने की तैयारी में था। तब स्टैनिकज़ई ने अपने संपर्क सूत्र के जरिये यह संदेश भेजा था कि भारतीय अथॉरिटी को बताया जाए कि काबुल में उन्हें कोई खतरा नहीं है। यह भी कहा कि अगर भारत को इस बात की चिंता है कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, लश्करे झांगवी या हक्कानी ग्रुप से उसकी एम्बैसी को खतरा है। तो ऐसा नहीं है। भरोसा दिलाने की कोशिश की गई कि काबुल तालिबान के पास है। यहां कोई और (लश्कर, जैश, झांगवी) नहीं है, लेकिन तालिबान के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए उस पर भरोसा संभव नहीं था।
खतरे के मिले थे इनपुट
सूत्रों के मुताबिक, भारतीय दूतावास पर खतरे के कई इनपुट थे। यह भी इनपुट था कि लश्कर-ए-तैयबा और हक्कानी गुट के आतंकी भारतीय दूतावास को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकते हैं। काबुल के लगातार बिगड़ते हालात और जान पर खतरे की आशंका को देखते हुए भारत ने अपने राजनयिकों और कर्मचारियों को विशेष विमान से वापस बुला लिया।
वेट एंड वाच की स्थिति में भारत
तालिबानी सत्ता को मान्यता देने के सवाल पर सूत्र का कहना है यह तो अभी बहुत दूर की बात है। भारत अभी वेट एंड वाच (इंतजार करो और देखो) की नीति अपना रहा है। सूत्रों ने साफ किया है कि दुनिया के लोकतांत्रिक देश तालिबानी सरकार को लेकर जो रुख अपनाते हैं, भारत भी उसी अनुरूप अपना फैसला लेगा।
तालिबान के खिलाफ एकजुट हो रहे अफगानी
वैसे, अफगानिस्‍तान पर तालिबान के कब्‍जे के बीच लोग इस आतंकी संगठन के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। पूर्व में तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने अब ‘इस संगठन’ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। तालिबान के खिलाफ छेड़ी गई इस जंग में अहमद मसूद ने दुनिया से भी मदद भी मांगी है। अहमद मसूद ने कहा कि- मुजाहिदीन लड़ाके एक बार फिर से तालिबान से लड़ने को तैयार हैं। हमारे पास बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद है। अफगान नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट के नेता अहमद मसूद ने तालिबान के खिलाफ संघर्ष जारी रखने का ऐलान करते हुए पिता की राह पर चलने के माद्दा दिखाया है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद वहां के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया था। उन्हें संयुक्त अरब अमीरात शरण दी है। संयुक्त अरब अमीरात ने बुधवार को कहा कि वह तालिबान के अधिग्रहण के बीच अफगानिस्तान से भागे राष्ट्रपति अशरफ गनी की “मानवीय आधार पर” मेजबानी कर रहा है।

रात को रोते रहे ब्रिटिश सैनिक
अफगानिस्तान के तालिबान के हाथों में जाने क बाद काबुल हवाईअड्डे पर अफरातफरी और हताशा का माहौल है। स्काई न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक- एक दिल दहलाने वाली घटना में हताश अफगान महिलाओं को अपने बच्चों को कंटीली तारों पर फेंकते देखा गया। एक वरिष्ठ ब्रिटिश अधिकारी ने स्काई न्यूज से स्टुअर्ट रामसे को बताया कि वे चिल्लाने की आवाज, हताशा का शोर सुन सकते हैं, क्योंकि हजारों लोगों के लिए काबुल हवाईअड्डा स्वतंत्रता का प्रवेश द्वार होगा तो कुछ के लिए तालिबान से बचने के सपने का अंत। रामसे ने बताया कि ये भयानक था कि महिलाएं अपने बच्चों को कंटीली तारों पर फेंक रही थीं और ब्रिटिश सैनिकों से उन्हें लेने को कह रही थीं। इस बीच कुछ बच्चे तो कंटीली तारों में फंस भी गए थे।
एक अधिकारी ने कहा कि- मैं अपने लोगों (सैनिकों) के लिए चिंतित हूं, कल रात सभी रोए थे, मैंने कुछ लोगों को समझाया भी था। स्काई न्यूज की रिपोर्ट बताती है कि यहां माहौल इतना खराब है कि हवाईअड्डे के फाटकों पर गोलीबारी के बीच दिन और रात परिवार बच्चों के साथ जान जोखिम में डाल रहे हैं, क्योंकि वे उस तालिबान से बचना चाहते हैं।
बता दें कि एक संकरी रोड के दूसरी ओर काबुल हवाई अड्डे की दीवारों के भीतर थके हुए ब्रिटिश सैनिक भी लेटे हुए हैं, जो इस भीड़ का मुकाबला करने के लिए अपनी बारी के इंतजार में हैं। जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे हैं राहत अभियान और अधिक तेज हो रहा है। क्योंकि ब्रिटिश सेना को अफगानिस्तान से कुछ ही दिनों में हजारों लोगों को निकालना है।
स्काई न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार- यह एक मानवीय मिशन है, जिसे देख ऐसा लग रहा है जैसे युद्ध के मैदान में हों। तालिबान ब्रिटिश सैनिकों से सिर्फ एक मीटर की दूरी पर हैं। तालिबानी लड़ाके काबुल हवाई अड्डे पर ब्रिटिश सैनिकों तक पहुंचने की कोशिश कर रही भीड़ को नियंत्रित कर रहे हैं। रामसे ने बताया कि वे भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कभी कभी हवा में फायरिंग करते हैं, जिससे लोग आगे बढ़ने से रुक जाते हैं। सच ये बहुत खतरनाक स्थिति है।

महिला न्यूज एंकर ने लगाई गुहार
एक अफगान महिला पत्रकार ने कहा है कि तालिबान का देश पर कब्जा होने के बाद उसे अपने टीवी स्टेशन पर काम करने से रोक दिया गया। ऑनलाइन पोस्ट किए गए एक वीडियो में महिला एंकर ने अपनी जान को खतरा बताते हुए मदद की गुहार लगाई है। हिजाब पहने और अपना ऑफिस कार्ड दिखाते हुए जानी-मानी न्यूज एंकर शबनम डावरान ने सोशल मीडिया पर जारी वीडियो क्लिप में कहा कि हमारी जान को खतरा है।
तालिबान के शासन के तहत 1996 से 2001 तक महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से बाहर रखा गया था, लड़कियां स्कूल नहीं जा सकती थीं, मनोरंजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और इनका उल्लंघन करने पर कठोर दंड लगाया गया था। हाल के महिनों में तालिबान द्वारा देश पर कब्जा किए जाने के प्रयासों के बीच महिला पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया है। हालाँकि, अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा करने के बाद से तालिबान ने दावा किया है कि देश में महिलाओं को शिक्षा हासिल करने और काम करने सहित कई अधिकार होंगे और मीडिया स्वतंत्र होगा।
तालिबान का एक अधिकारी इस मुद्दे को साबित करने के लिए एक टीवी चैनल पर एक महिला पत्रकार के साथ आमने-सामने साक्षात्कार के लिए भी बैठ चुका है, लेकिन सरकारी प्रसारणकर्ता आरटीए के लिए अफगानिस्तान में छह साल तक पत्रकार के रूप में काम कर चुकीं शबनम डावरान ने कहा कि इस सप्ताह उन्हें उनके कार्यालय में प्रवेश करने से रोक दिया गया, जबकि पुरुष सहयोगियों को अंदर जाने दिया गया।
डावरान ने वीडियो में कहा कि मैंने व्यवस्था बदलने के बाद भी हार नहीं मानी और अपने कार्यालय के लिए चली गई, लेकिन दुर्भाग्य से मुझे अपना ऑफिस कार्ड दिखाने के बावजूद प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि- कार्डधारक पुरुष कर्मचारियों को कार्यालय में प्रवेश करने की अनुमति दी गई, लेकिन मुझे बताया गया कि मैं अपना कर्तव्य जारी नहीं रख सकती। क्योंकि सिस्टम बदल दिया गया है।
इसके बाद डावरान ने दर्शकों से गुहार लगाते हुए कहा कि- जो लोग मेरी बात सुन रहे हैं, अगर दुनिया मेरी सुनती है, तो कृपया हमारी मदद करें क्योंकि हमारी जान को खतरा है। डावरान का फुटेज साझा करने वालों में अफगानिस्तान में 24 घंटे चलने वाले टोलो न्यूज के संपादक मिराका पोपल भी शामिल हैं।

विमान से चिपकने के प्रयास में युवा फुटबालर की मौत
अफगानिस्तान के एक खेल संघ ने गुरुवार को कहा कि अफगानिस्तान की राष्ट्रीय युवा टीम के लिए खेलने वाले एक फुटबालर की अमेरिकी विमान से चिपके रहने की कोशिश के बाद गिरकर मौत हो गई। तालिबान के नियंत्रण वाले काबुल में अमेरिकी विमान लोगों को सुरक्षित रूप से बाहर निकालने की कोशिश में जुटा था। खेल समूहों के साथ काम करने वाली एक सरकारी संस्था अफगानिस्तान के शारीरिक शिक्षा और खेल महानिदेशालय ने जकी अनवारी की मौत की पुष्टि की है। समूह ने फेसबुक पर पोस्ट एक बयान में कहा गया कि-अनवारी, हजारों अफगान युवाओं की तरह देश छोड़ना चाहता था, लेकिन एक अमेरिकी विमान से गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति अशरफ गनी के भाग जाने के बाद तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया था। जिसके बाद देश से बाहर जाने के लिए हजारों अफगान इस सप्ताह एयरपोर्ट पर उमड़ पड़े थे। सोमवार को सामने आए एक वीडियो में सैंकड़ों लोगों को अमेरिकी वायुसेना के विमान के साथ दौड़ते देखा गया था। सोशल मीडिया पर आगे की क्लिप में दो लोग एक सी-17 विमान के उड़ान भरने के बाद आसमान से गिरते हुए दिखाया गया है। बाद में विमान के पहियों की जगह पर मानव अवशेष पाए गए हैं। अमेरिकी सेना ने इसकी पुष्टि की है और कहा है कि वह सी-17 से जुड़ी मौतों की जांच कर रही है।
इसलिए लोग भाग रहे हैं अफगानिस्तान से
1990 के तालिबान के क्रूर शासन की यादें आज भी अफगानिस्तान के लोगों के जेहन में है। उस दौरान संगीत और टेलीविजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लोगों को पत्थरों से मार डाला गया था। महिलाओं को अपने घरों में कैद कर दिया गया था। अब फिर से तालिबान के कब्जे के बाद अफगानी डरे हैं कि आगे क्या होगा। इसने लोगों में घबराहट पैदा कर दी है, जिससे अफगान भागने की कोशिश कर रहे हैं।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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