मयाली पहाड़ियों के बीच में खिला बाजार फूल सा सुंदर सजीला सज रहा सजीव हो महबूब सा। सुहावनी समीर है...
Vinay Anthwal
चैतन्य सुमन हम बच्चे हैं मन के सच्चे धरती के हैं फूल सुनहरे। घर की रौनक़ हम बच्चे हैं मस्ती...
मानव मर्यादा चरित्र अपना देखो किस ओर ढ़ल रहा है । मलिनता लिए उर किस ओर बढ़ रहा है तुम...
अज्ञानान्धकार तिमिर ये कैसा प्रसर रहा है मूढ़ मानव बन रहा है। अवनि भी अब रुठ रही है तरुणी निर्लज्ज...
हम बदल रहे हैं हम कैसे अब बदल रहे हैं मर्यादाएँ तोड़ रहे हैं। भौतिकता में भटक रहे हैं चरित्र...
मनोभाव सोचता हूँ मैं भी अक्सर कुछ ऐसा अब कर जाऊँ । ऋषयों की भाँति मैं भी परमतत्व को जान...