सियासत की बिछने लगी बिसात। देश को पता तो चली औकात। फूटी आंख न जो कभी सुहाए मिलने लगी उन्हीं...
Poet
शुभागामन शरद ऋतु का बहुत ठंडी हवाएं हैं बहुत ही सर्द है मौसम, शायद कल रात बारिश ने वसुधा को...
कई दिनों बाद बारिश हुई मौसम की सफल न साज़िश हुई। कई दिनों बाद बारिश हुई। बरसे बादल ये क्या...
नई शुरुआत करें आओ! कोई नई शुरुआत करें। पुराना भुलाकर नया याद करें। खंडहर जीवन को आबाद करें। आओ! नई...
उड़ने से पहले नोंच लिए सारे पंख उड़ने से पहले। खुले आसमां के अब रहे नहीं मायने। सपने तोड़ दिए...
छोड़कर बादलों को पानी हुआ फ़रार। धूप बिछाकर जाजिम पसर गई धरा पर। हवाएं भी दुबक गईं कहीं मुंह छिपाकर।...
अनेकों रंग दिखलाता है मौसम इन पहाड़ों का। कभी लगती है तीखी धूप कभी एहसास जाड़ों का।। कभी चलती है...
वक़्त का मुसाफ़िर वक़्त का मुसाफ़िर निकल पड़ा सफ़र पर। पथ अनजान मंज़िल खोई - खोई है। साथ में न...
भूख़ के परिंदे भूख़ पेट से खेलती रही, रात भर। देखता रहा रतजगा रोटियों के ख़्वाब। मन मन ही मन...
औलाद औलाद बाप से हिसाब मांगती हैं। पैदा क्यों किया, का जवाब मांगती हैं। जिन आंखों ने कभी पढ़ें नहीं...