एक श्रद्धांजलि भागीरथी के बहाव को, तू सून रहा सुरक सुरक। जानबूझकर मौन होकर, तू देख रहा सुरक सुरक। जन्मभूमि...
युवा कवि
अज्ञानान्धकार तिमिर ये कैसा प्रसर रहा है मूढ़ मानव बन रहा है। अवनि भी अब रुठ रही है तरुणी निर्लज्ज...
पैंछु पठ्याळी करा धौं कुठार कु अन्न खवा धौं मातृभुमि छ तुम्हारी भू कानुन लावा धौं माधु कु त्याग समझा...
इंसाफ़ की चाहत में सत्य और इंसाफ पर पड़ जाती है मिट्टी क्योंकि कानून की देवी के आँखों पर बांध...
हम बदल रहे हैं हम कैसे अब बदल रहे हैं मर्यादाएँ तोड़ रहे हैं। भौतिकता में भटक रहे हैं चरित्र...
मनोभाव सोचता हूँ मैं भी अक्सर कुछ ऐसा अब कर जाऊँ । ऋषयों की भाँति मैं भी परमतत्व को जान...
पहाड़ की वसुन्धरा, मां धूल सेवा सूंण, मां तु अबारि हिकमत ना ख्वे, मां हमारु हौंसला बढ़ौंदि रे, मां अपणां...
ताऴु दग्डया में ताऴू छों सबसी पुराणु वैध छों गुम चोंट पर आराम देदू छों तुमणी याद आज दिलोणू छों...
जब ज़िन्दगी की दुःस्वारिया से हम परेशां हो जाते हैं। जब ये दुनिया वाले हमको रुला जाते हैं।। जब किसी...
गले से लगा लो मेरी उलझनें सुलझ जायें ग़र तुम गले से लगा लो। ग़मों के बादल छट जायें ग़र...