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December 23, 2024

कहानीः ‘ममता की ललक’- लेखक रामचन्द्र नौटियाल

ममता के माजी -पिताजी परिवार घर गांव के सभी लोग खुश होते हैं। ममता का आज खुशी का ठिकाना नहीं है। ममता समाज के लिए एक प्रेरणाश्रोत बनी।

“आज फिर थकी हारी” मन में कई सवाल लिए स्कूल से घर पहुंची ममता। “मां मैं पढाई नहीं छोडना चाहती” ममता बोली। क्या करेगी इतना पढि लिखकर, बहतु तो हो गई तेरी पढाई। लडकी के लिए बहुत है बेटी इतनी पढ़ाई। अब तेरी शादी भी तो करनी है। पर ममता मन मसोस कर रह गई। मन में सोचती है कि क्या इस जीवन में पैदा होना, शादी करना व बच्चे पैदा करना ही एकमात्र अद्देश्य है लडकी का।
ममता के पिताजी घर आते हैं कहते हैं-बेटी तुझे कोई दिक्कत तो नहींआ रही है। नहीं पापा-मुझे कोई दिक्कत नहीं है। भला मुझे दिक्कत क्यों होगी। पर मैं पापा अपनी पढ़ाई आगे जारी रखना चाहती हूं। पापा ने बेटी के आंखों व चेहरे पर देखा कि – बेटी के मन में कुछ कर गुजरने की ललक है।
पापा बेटी की पढ़ाई को जारी रखना चाहते हैं। पर परिवार-समाज के पूर्वाग्रह के द्वन्द्व से वह भी कभी-कभी घिर जाते हैं। ममता के पापा सोचते हैं-ये समाज भी क्या है? जो मात्र शादी को ही सब कुछ समझता है। बेटी के भी तो कुछ सपने -इरादे होते हैं। कहीं न कहीं बेटी की बातों और इरादों को पापा का मौन सकारात्मक समर्थन दिख रहा था।
एक दिन ऐसे ही ममता की मां पूछ बैठी- बेटा ममता मान जा शादी कर ले। बहुत लोग आ रहे हैं तेरे रिश्ते के बारे में। अब तूने बीए/एमए की डिग्री ले ली है। आगे क्या पढ़ाई करेगी? तेरे साथ की लडकियों के बच्चे भी हो गये हैं। मां तू चिन्ता मत कर। एक दिन शादी तो होनी ही है। पर ये उम्र, ये सारे दोस्त, ये कालेज, ये पढ़ाई तब नहीं होगी। कई बन्दिशें होंगी, तुम
ही तो कहती हो-आदर्श बहू बनना है तुझे पराये घर की। तब ही तो बन पाऊंगी मां, जब इच्छाओं का दूसरे की खातिर दमन करूंगी, पर मां जीवन में कुछ न कुछ तो चुनौतियां व समझौते स्वीकार करने पडेंगे। अपने लिए न सही इस समाज के लिए जो हर बात पर उंगली उठाता है।
ममता आज स्कूल गई तो वह नई ऊर्जा व उत्साह से भरी हुई थी। ममता सोचती है कि- आज हमारे कालेज मे एक डिबेट है उसमें मैं चर्चा करूंगी कि लडकियों के लिए इतनी बन्दिशें क्यों? जब ईश्वर ने इस धरती पर सबको स्वछन्द भेजा है तो प्रकृति का उल्ल॔घन क्यों? ममता परिचर्चा में कालेज में प्रथम आती हैं। मां मैं आज फर्स्ट आयी।
किसमें ममता ? मां जिज्ञासा भरी आवाज में ममता को पूछती है। प्रथम तो आई! पर शादी तो हो जाती तेरी। जवान हो गई तू बेटी। पर मां तुम केवल मेरी शादी से ही खुश होओगी। आखिर मां जो ठहरी? मां का दिल पिघल गया, मां के आंसू निकल आये। ममता समझाती है मां को- मां एक दिन शादी भी तो होनी ही है। भविष्य के बारे में मेरा वर्तमान खराब मत करो। इससे न मेरा वर्तमान सही होगा न भविष्य।
ममता एक भावुक व समझदार बेटी की तरह अपनी मां को समझाती है। मां मेरे भी तो जीवन
में सपने हैं। तुझे तो पराये घर जाना है बेटी। बेटी तो पराये घर का धन होती है। दूसरे के अनुसार चलना होगा। पति, सास, ससुर, परिवार और समाज से समझौता करना होगा ममता। मां ममता से कहती है।
इसीलिए तो कह रही हूं मां। जब पराये घर जाना है तो अपने पैरों पर तो खड़ा होना ही होगा। अपने पैरों पर खड़े होने के लिए अच्छी शिक्षा-दीक्षा जरूरी है मां। नहीं तो ये समाज अशिक्षित, कमजोर व चंचित, शोषित, पीड़ित, दबे- कुचले लोगों का ये समाज शोषण करता आया है। खासकर, महिलाओं का ये पुरुष प्रधान समाज शोषण करता आया है मां। इसका इतिहास गवाह है। मां समय बदल गया है।
अपने अधिकारों व शिक्षित परिवार, समाज, राष्ट्र के लिए लड़की का पढ़ना जरूरी है मां।
ममता उच्च शिक्षित नागरिक की तरह मां को शिक्षा की अहमियत बताती है। आंखों में करुणा के आंसू लिए व आत्मविश्वास से भरे लहजे में ममता अपनी मां से कहती है। इसी तरह ममता व उसके माजी पिताजी का परिवार में स्नहे पूर्ण प्रेम से भरा जीवन चलता है।
पर! कभी-कभी ममता के माजी -पि ताजी अनायास ही हर माता-पिता की तरह चिन्ति त हो उठते हैं। लडकी जवान हो गई है। इसके लिए लड़का ढूंढना पडे़गा। ममता…ओ ममता-ममता की मां कहती है। हां…बोलो मां। तेरे लिए लड़का ढूंढते हैं। तेरी शादी कर देते हैं। ममता कहती है -बस भी करो मां। मुझे पूरी पढाई तो करने दो। कौन शादी करेगा
मुझ अधपढ़ी लडकी से। ना कोई जॉब। ना कोई डिप्लोमा, डिग्रियां। मां आजकल गाय भैंस भी ले रही हैं। क्या करना ऐसी डिग्रियों का। जिसमें जीवन भर बेरोजगार ही रहना है। ममता अपने अनुभव को मां को समझाती है।
ममता पढ़ने में अच्छी लडकी थी। हर वर्ष अपनी कक्षा में प्रथम आती थी। इसी वजह से उसके गुरुजनों साथियों व शुभचिन्तकों ने आगे पढाई व कम्पिटिशन की तैयारी के लिए ममता को मार्गदर्शित व अभिप्रेरित किया। ममता के मन में दिन-रात पढने के व कम्पीटिशन फाइट करने की ललक लगी रहती। वह हर पल हर क्षण कुछ कर गुजरने की सोचती व समाज तथा देश के लि ए अच्छे-अच्छे सपने बुनती। कभी ल्क्षमीबाई के बारे में सोचती। कल्पना चावला की तरह कल्पना की उड़ान भरती। कभी भारत की कम्प्यूटर महिला गणितज्ञ शकुन्तला देवी के बारे में सोचती। कितनी विदुषी हैं भारतीय महिलाएं, पर ये समाज
लडकियों व महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करता है। ममता कभी -कभी दार्शनिक विचारों में डूब जाती है। शास्त्रों ने भी तो कभी महिलाओं का तिरस्कार नहीं किया। “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” कहा है शास्त्रों ने। पर कु छ निरंकुश पुरुषों ने हमेशा हमारा एकाधिकार न छिन जाये। महिलाओं, लड़कियों को अपने अधिकारों से वंचित रखने की नाकाम कोशिश की। ममता आज महिलाओं के प्रति बनी धारणा को तोड़ना चाहती है व समाज की सोच बदलने की ललक ममता में कुलांचे मार रही थी।
एक दिन वह समय भी आ गया। जब ममता एमए में अपने विषय में यूनवर्सिटी टापर आती है। खुशी से झूम उठती है तथा आगे प्रशासनिक तैयारी में जुट जाती है। अब ममता के माता-पिता व समाज की भी ममता के प्रति धारणा बदलने लगती है। टापर आने पर ममता के माजी -पिताजी बहतु खुश होते हैं। आगे ममता प्रशासनिक तैयारी जुट जाती है। देश की सर्वोच्च परीक्षा (आईएएस) में अच्छी रैंक लाती है। ममता के माजी -पिताजी परिवार घर गांव के सभी लोग खुश होते हैं। ममता का आज खुशी का ठिकाना नहीं है। ममता समाज के लिए एक प्रेरणाश्रोत बनी।
लेखक का परिचय
रामचन्द्र नौटियाल राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गड़थ विकासखंड चिन्यालीसौड, उत्तरकाशी में भाषा के अध्यापक हैं। वह गांव जिब्या पट्टी दशगी जिला उत्तरकाशी उत्तराखंड के निवासी हैं। रामचन्द्र नौटियाल जब हाईस्कूल में ही पढ़ते थे, तब से ही लेखन व सृजन कार्य शुरू कर दिया था। जनपद उत्तरकाशी मे कई साहित्यिक मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दे चुके हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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