विजयादशमी पर्व पर गीत-मन चलो करो सीमोल्लंघन, रचियता-मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी
मन चलो करो सीमोल्लंघन।
बिन छोड़े मर्यादा बन्धन।।
अतल गगन का है आमन्त्रण।
नव नवल क्षितिज का आकर्षण।।
अज्ञात पंथ पर हो चक्रण।
हो नवाक्षरों का अब वाचन।।…1
नव दृश्यों का है कौतूहल।
कठिन कठिन प्रश्नों का कुछ हल।।
नये काल के हों नूतन पल।
नव चेतनता नूतन स्पन्दन।।….2
ऊँची ऊँची हों शाखायें।
पर्ण पुष्प फल ऊँचे जायें।।
विकिरित बीज दूरियाँ पायें।
किन्तु मूल से जुड़ा रहे तन।।….3
दें खोल कोष की सब गाँठें।
औ भेद दूरियाँ सब पाटें।।
हर प्राप्त मुक्त कर से बाँटें।
हो दान भाव का अभिसिंचन।।….4
है नींव बड़ी मजबूत बनी।
पुरखों के श्रम का स्वेद सनी।।
पर न रहे केवल बस कथनी।
हम खड़ा करें उत्तुंग भवन।।….5
बलपूर्वक सब आलस झटकें।
औ निरुत्साह को तो पटकें।।
कभी मार्ग में कहीं न अटकें।
अपने आप जुटेंगे साधन।।….6
जागृति का यह नूतन गायन।
खुला हुआ है नव वातायन।।
करगत है यह अनुपम वायन।
विजय पर्व का है अभिनन्दन।।….7
मन चलो करें सीमोल्लंघन।
बिन छोड़े मर्यादा बन्धन।।
कवि का परिचय
नाम: मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी
शिक्षा: एम.एससी., भूविज्ञान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), पीएचडी. (हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय)
व्यावसायिक कार्य: डीबीएस. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, देहरादून में भूविज्ञान अध्यापन।
मेल— mukund13joshi@rediffmail.com
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।