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February 9, 2025

समान नागरिक संहिता के कई प्रावधानों पर समानता पार्टी ने किया विरोध

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता 27 जनवरी को लागू कर दी गई थी। वहीं, इसे लेकर अब भी प्रतिक्रिया आ रही है। उत्तराखंड समानता पार्टी ने इसके कई प्रावधानों पर आपत्ति दर्ज करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखा है। साथ ही राज्य के पर्वतीय जिलों में क्षेत्र के आधार पर परिसीमन कराने की मांग गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड समानता पार्टी के मीडिया प्रभारी विनोद कुमार धस्माना ने बताया कि पार्टी के राष्ट्रीय प्रमुख महासचिव एलपी रतूड़ी ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में यूसीसी में कई प्रावधानों की तरफ मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप को लेकर बनाए गए नियमों से देवभूमि उत्तराखंड में गलत असर पड़ेगा। साथ ही एक वर्ष की अवधि से उत्तराखंड में निवास कर रहे लोगों को उत्तराखंड का निवासी माने जाने पर उन्होंने आपत्ति दर्ज की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप किसी भी धर्म में स्वीकार्य नहीं है। यह अनैतिक कार्यों को सरकारी मान्यता देकर उसे नैतिक बनाने का प्रयास है। कहा कि इन प्रावधानों की आड़ में लव जिहाद जैसे कार्यों को कानून संबत बनाया जा सकता है। इससे समाज में कई विसंगतियों पैदा होगी। उक्त रिश्तों से उत्पन्न जैविक संतान को नाना की जायजाद में हिस्सा दिया जाना एवं दादा की संपत्ति में हिस्सा न मिलने से बड़ी विसंगति होगी। इससेअवैध रिश्तों को बढ़ावा मिलेगा तथा संपत्ति संबंधी विसंगतियां पैदा होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

समान नागरिकता में असमानता क्यों?

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में एक साल से रह रहे लोगों को उत्तराखंड का निवासी माना जाना भी आपत्तिजनक है। एक तरफ राज्य में जहां मूल निवास की मांग की जा रही है, वहीं इस तरह के प्रावधान लोगो में आक्रोश पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि जनजातियों को यूसीसी के दायरे से अलग रखा जाना भी एक्ट पर सवालिया निशान लगाता है। सात ही उन्होंने उत्तराखंड में वर्ष 2026 में प्रस्तावित परिसीमन को क्षेत्रफल के आधार पर किए जाने का प्रस्ताव उत्तराखंड विधानसभा से पारित कर केंद्र को भेजे जाने की मांग भी की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि यदि परिसीमन क्षेत्रफल के आधार पर न किया गया तो उत्तराखंड राज्य गठन का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जहां पर्वतीय क्षेत्र से बढ़ते पलायन से गांव वीरान हो गए हैं, वहीं मैदानी क्षेत्रों में अन्य राज्यों से लोगों के आने से जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। ऐसे में मैदानी क्षेत्रों में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ने से पर्वतीय जनपदों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा। साथ ही वहां का विकास लगभग खत्म हो जाएगा। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. वीके बहुगुणा ने भी मुख्यमंत्री से उक्त मसलों पर हस्तक्षेप की मांग की है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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