पढ़िए ललित मोहन की दो हिंदी कविताएं, जाहिल व जिंदगी को ना झंड कर
जाहिल…
सुनो बताऊं कैसा लिखो…
ऐसा लिखो ना तैसा लिखो…
जैसा है कुछ वैसा लिखो…
लिखना चाहते हो तब लिखो…
मैं बताता हूं तुम्हें तरीका लिखने का…
रचना चाहते हो या लिखना बताओ…
काव्य शिल्प के लिए रसों को खोजो…
किसी झुरमुट में या भरे कोलाहल बीच…
मूकदर्शक बन एकटक देखते रहो बस…
हर गतिविधि जो गुज़र रही सामने तुम्हारे…
है गद्य विधा यदि तो खोजो एक बस अक्षर…
अक्षर ना कुछ ज्यादा महज तिल के बराबर…
अब ढूंढो पांच कारक जो जरूरी है लिखने के…
क्या ? कब ? कहां ? कौन? कैसे? कि जैसे…
तिल का ताड़ बनाने में तो ठहरे माहिर हो तुम…
जिंदगी को ना झंड कर…
जिंदगी को ना झंड कर
जरा भी ना घमंड कर
सुबह शाम बैठक दंड कर
योग अपना प्रचंड कर… जिंदगी को ना…
ना उल्टा ना पुल्टा कर
आसमान ना पल्टा कर
बात पते की सुनता कर
दिल में थौड़ा ठंड कर… जिंदगी को ना…
जो करना सो आज कर
भाग ना कल की बात पर
कोस ना जिंदगी बात बात पर
दया भाव कुछ फ्री फंड कर… जिंदगी को ना…
मुस्कुरा किसी के अनोखे अंदाज पर
या गीत गा जा किसी बगीचे बाग पर
जा जला तू दीप अंतस खुद आप पर
हो अडिग पथ पर नई पैदा उमंग कर…
जिंदगी को ना…
कवि का परिचय
ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।