अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस के उपलक्ष्य में पढ़िए ये शानदार गजल
हो के मग़रूर मुझे उसने सताया होगा।
पैर की जूती समझ मुझको रुलाया होगा।।
रोज़ ताने सुना दिल मेरा दुखाया उसने।
नौकरी करना मेरा उसको न भाया होगा।।
उससे ज़्यादा क्या पढ़ी, आई है शामत मेरी।
चिढ़ के शिक्षा से मेरी, रोब जमाया होगा।।
दर्द मेरा न जाना है किसी ने इस घर में।
गुनगुना गीत कोई दर्द भुलाया होगा।।
बेटी मेरी क्या हुई सूज गया मुंह सब का।
ये ससुर सास को कुछ रास न आया होगा।।
दो घड़ी चैन मुझे घर में मिला ही कब है।
निपटा कर काम सभी नाम न पाया होगा।।
त्याग कर मायका इस घर को बनाया अपना।
कितनी यादों ने तड़प शोर मचाया होगा।।
हाय माँ के वे आँसू देख जी रोया कितना।
किस तरह भूल वो सब जी लगाया होगा।।
हाथ को अपने जगन्नाथ समझती हूँ मैं।
इस भरोसे ने सदा साथ निभाया होगा।।
मर्द तो ग़ैर है, नारी का सहारा कब था।
गर्भ दूजी बेटी का सब ने गिराया होगा।।
शिक्षा पाकर भी रुपेला दुखी ये नारी है।
काम करके बड़ा कब नाम कमाया होगा।।
कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।