पढ़िए पूनम थपलियाल की ये सुंदर गढ़वाली रचना- का गे होली
का गे होली
चैत की मैना की काफल पाकी,
घुरौंदी घुघूती की प्यारी सांखी।
उड़दा पन्छ्यों की कन भली टोली,
का गे होली का गे होली।
खिलदी फूलों की सेंती क्यारी,
कोदा धानों की हरि भरी सारी,
बांज बुरांस की रोप्यी डाळी,
कन छैई दगड़यों की हंसी ठिठोळी,
का गे होली का गे होली।
गैल्यांण्यों दगड़ी जांदा छां बणों मा,
घासा गडोळी लांदा छां मुंड मा,
खुश होन्दी मांजी जब खोलदी घास की पूळी,
का गे होली का गे होली
सोंण का मैना की लगीं कुरेड़ी,
देखी की झुरौन्दी छे मेरी झिकूड़ी,
भादों का मैना की देखी हर्याळी,
का गे होली का गे होली।
भैजी भुलों गैल स्कूल जाणु हमारू,
गुरुजनों कु पड़ोणु प्यारू,
भै बैण्यों की अन्वार भोली,
का गे होली का गे होली।
दिन भर कामों मा लग्यां रैन्दा छां,
रात मा सैरू पढ़्यां गुणदा छा,
सूणी नानी की कहानी बोली,
का गे होली का गे होली
कवयित्री का परिचय
पूनम थपलियाल
एमए बीएड हिंदी
अध्यापिका- निजी विद्यालय
ढाक, जोशीमठ चमोली, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।