पढ़िए साहित्यकार एवं कवि सोमवारी लाल सककानी की कविता-वर्ष इकहत्तर के युद्ध में
वर्ष इकहत्तर के युद्ध में
वर्ष इकहत्तर की युद्ध में, दुश्मन को हम ने रौंद दिया,
सोलह दिसंबर इसी दिवस, बांग्लादेश ने जन्म लिया।
मुक्ति वाहिनी नाम दिया था, सैन्य शक्ति का भारत ने ,
जल,नभ,थल में युद्ध लड़ा था, रण कौशल से भारत ने।
वर्ष इकहत्तर के युद्ध में
तिरानवे सहस्त्र सैनिक शत्रु के, समर्पण को मजबूर हुए,
जनरल जैकब और नियाजी, थे भय से घुटने टेक दिए ।
इंदिरा जी से देर रात में, भारत जनरल विचार विमर्श किए,
लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत अरोड़ा, पूर्वी पाक जीत लिए।
वर्ष इकहत्तर की युद्ध में
तीन सहस्त्र नौ सौ सैनिक, भारत माता के शहीद हुए ,
नौ हजार आठ सौ इक्यावन घायल होकर भी युद्ध लड़े।
दुम दबाकर युद्ध क्षेत्र से, जनरल मूसा भाग गया ,
जनरल भुट्टो, यां यां खां भी, डर के मारे कांप गया।
वर्ष इकहत्तर की युद्ध में
विश्व विजई सेना भारत की, जब पूर्वी पाक में घुस आई,
मुक्ति वाहिनी के नाम से, दुनिया भर में वह यश थी पाई।
जनरल मूसा भुट्टो ने सोचा, शांति बिगाड़ें भारत की।
युद्ध जीतना तो दूर रहा, पर खाई ठोकर दर-दर की।
वर्ष इकहत्तर के युद्ध में
तीन हजार सैनिक भारत के, छब्बीस हजार थे दुश्मन के,
कुशल रणनीति से भारत की, मलिक इस्तीफा दे बैठे ।
जनरल जैकब को मानिक शाह ने, जब युद्ध को ललकारा,
पिस्तौल थमा दी नियाजी ने, पाकिस्तान हार स्वीकार किया।
वर्ष इकहत्तर के युद्ध में
विजय उत्सव में डूबा भारत, बांग्लादेश उत्पन्न हुआ ।
यह कैसा रण कौशल था ! शत्रु नहीं कुछ समझ सका।
इंदिरा जी का मान बढ़ा अर, भारत जग शिर मौर बना।
ले. जनरल जगजीत अरोड़ा नायक बनकर उभर पड़ा।
वर्ष इकहत्तर युद्ध में
कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत ।
सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।