कारगिल विजय दिवस पर पढ़िए शिक्षक विजय प्रकाश रतूड़ी की कविता-युद्ध था भीषण कठिन वह
युद्ध था भीषण कठिन वह,
शत्रु चोटी पर चढ़े थे।
वीर अपने कष्ट में थे ,
शिखर के पेंदे खड़े थे।
जीत लगती थी असंभव,
राष्ट्र पर चिंता थी पसरी।
हे विधाता किस तरह से,
पीछे ठेले सेना अरि की।
किन्तु सैनिक भारती के,
रुद्र का अवतार जिनमें,
है शिवा सा युद्ध कौशल,
हमीद सा बल शौर्य उनमें।
जान की बाजी लगाकर,
चल पड़े जांबाज अपने।
चूम मिट्टी निज वतन की,
बढे ले हथियार अपने।
देश पर बलिदान का वह,
युद्ध उत्सव चल पड़ा फिर।
तान कर के ध्वज तिरंगा,
जीत का पग बढ चला फिर।
रक्त का करके तिलक तब,
आश की देवी जगायी।
देश के जय नाद ने फिर,
सब निराशा थी भगाई।
ठेल डाला अरि समूह को,
देश की सीमा से बाहर।
देश के रण बांकुरों ने,
जीत का उपहार बांटा।
कारगिल विजय दिवस है,
सेना के गुणगान का दिन।
समर भू से जो न लौटे ,
उनके यश मान का दिन।
कवि का परिचय
नाम-विजय प्रकाश रतूड़ी
प्रधानाध्यापक राजकीय प्राथमिक विद्यालय ओडाधार, विकासखंड भिलंगना, जनपद टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।