पढ़िए दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली कविता-स्वाचा-स्वाचा, भलु-भलु स्वाचा
स्वाचा-स्वाचा, भलु-भलु स्वाचा,
भलु सोचिक, भलु – ज्यू ह्वे जांद.
बगत – बगत, सोची – सोची क –
बित्यूं बगत, कबि याद भि आंद..
इनु बी नीं, सब हमन द्याख- ल्याख,
आजा हुयूं बच्चा, आज तैं देखणूं च.
ये आज न सदनी, भोऴ ह्वे जांण –
आजा ये भोऴ तैं, वेन बि लेखणूं च..
चिंतन – मंथन, सदनि बटि ह्वाया,
सोचदै – सोचदै मनखि, बढदै ग्यायि.
जै ब्याऴि तैं, हम भलु-भलु बोलदवां –
वे ब्याऴी खातिर, कत्यूंन ज्यान गवांइ..
स्वाचा गौंम क्य छौं, सौ साल पैली,
चौछोड़ि , रिक्क- बाघ हि घुमदा छा.
मनखि जितदु छौ, कबि- कबि ऊंसे –
भिंडि दौं, रिक्क बाघ ही जितदा छा..
जैक दांव, जख – जखम लाग,
कुटमदर्यूं लेकि, उनै कू चलदै गाय.
हां एक बात छै, तब का लोगौं म –
बदन तोड़ि, तौंन मीनत काय..
नयॉं – नयाँ गौं, बसैं घाटी- पाड़ौं फरि,
कखि बटि वो भि त, आया- गाया छा.
इके मवसि करि, यख- वख बटि ऐकी
ओबि त तब, पलायन करि आया छा..
द्वी सौ चार सौ साला, इतिहास हमरु च,
जादा – जादा, आठ सौ साल ह्वे ह्वाला.
‘दीन’ ! यो इत्यास, अब हमन बचॉण –
मिलि- जुलि, जै- जै उत्तराखण्ड ब्वाला..
कवि का परिचय
नाम .. दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव.. माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य
सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।